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(४२) प्यारे नेमसों प्रेम किया रे। देक॥ उनहीके अरचैं चरचैं, परचैं सुख होत हिया रे ॥ प्यारे. ॥१॥ उनहीके गुनको सुमरौं, उनही लखि जीय जिया रे॥प्यारे. ॥ २॥ 'द्यानत' जिन प्रभु नाम रट्यो तिन, कोटिक दान दिया रे॥ प्यारे ।। ३ ।।
राजल कहती हैं कि मैंने प्रिय नेमिनाथ से ही प्रेम किया है।
उन्हीं की पूजा, उन्हीं की चर्चा, उन्हीं का अतिशय सुन-सुनकर अपने चित्त में अत्यन्त प्रसन्नता होती है, अर्थात् श्रद्धा व बहुमान होता है।
उन्हीं के गुणों का सुमिरन से, उन गुणों के ध्यान से यह जीवन जी रही हूँ।
द्यानतराय कहते हैं कि जिन्होंने ऐसे प्रभु का नाम जपा है, उनकी भक्ति की हैं, उन्हें कोटि-कोटि दान देने का पुण्यफल प्राप्त होता है।
धानत भजन सौरभ