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(५५) चल पूजा कीजे, बनारसमें आय॥टेक॥ पूजा कीजे सब सुख लीजे, आनंद मंगल गाय ।। चल.॥१॥ पारसनाथ सुपारस राजें, देखत दुख मिट जाय॥ चल. ॥२॥ गंगाने परदक्षिण दोनी, ता पुरकी हित लाय ।। चल.॥३॥ 'द्यानत' औसर आज हि आछो, वंदे प्रभुके पाय॥चल.॥४॥
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हे भव्यजीवो ! आओ, बनारस में आकर पूजा करो। पूजा करके सब सुख को प्राप्त करो। आनंद और मंगल के गीत गाओ।
यहाँ पारस के समान पार्श्वनाथ सुशोभित हैं जिन्हें देखते ही सब दुःख मिट जाते हैं।
गंगानदी ने इस नगरी की प्रदक्षिणा दी है, इस नगर (बनारस) की छवि स्थिति अत्यन्त मनोहारी व सुखकारी है।
द्यानतराय कहते हैं कि आज अच्छा अवसर है कि प्रभु के वंदन का अवसर मिला है।
घानत भजन सौरभ