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राग परज नेमि! मोहि आरति तेरी हो ॥टेक॥ पशू छुड़ाये हम दुख पाये, रीत अनेरी हो॥ नेमि. ॥१॥ जो जानत हे जोग धरेंगे, मैं क्यों घेरी हो।नेमि.॥२॥ 'द्यानत' हम हूं संग लीजिये, विनती मेरी हो। नेमिः ॥ ३॥
राजुल कह रही हैं - हे नेमिनाथ! मुझे आपके प्रति बहुत भक्ति है।
आपने पशुओं को छुड़ाकर उन्हें मुक्त करा दिया और हम (आपके भक्त) दुःख उठा रहे हैं । यह आपकी कैसी अनोखी रीति है !
जब आप जानते थे कि आप योग धारण करेंगे, तो मुझे क्यों इस सीमा में । (इस सम्बन्ध में) बाँधा?
द्यानतराय कहते हैं कि मेरी तो इतनी ही विनती है कि मुझे भी अपने साथ ले लीजिए।
अरी · अनोखी, आरति - अधिक भक्ति ( आ = सब ओर से, रति - भक्ति)1
धानत भजन सौरभ