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(३३) गिरनारिपै नेमि विराजत हैं। टेक ।। काउसग्ग लम्बित भुज दोऊ, वन गज पूजा साजत हैं। गिर.॥१॥ नासादृष्टि विलोक सिंह मृग, बैर जनमके भाजत हैं। गिर.॥२॥ 'द्यानत' सो गिरि वन्दत प्रानी, पुन्य बहुत उपराजत हैं। गिर.॥३॥
गिरनार पर्वत पर श्री नेमिनाथ तप में लीन विराजमान हैं। .. कायोत्सर्ग मुद्रा में, हाथों के समाने, दोनों हाथ-भुजाएँ लटकाए हुए चे । अत्यन्त सुशोभित होते हैं।
उनकी नासाग्न दृष्टि को देखकर, सिंह और मृग आदि वन्यजीवों के जन्मजात वैर भी तिरोहित हो जाते हैं, समाप्त हो जाते हैं, दूर हो जाते हैं।
यानतराय कहते हैं कि जो इस पर्वत पर उनकी वन्दना करता है वह बहुत पुण्य उपार्जित करता है।
धानत भजन सौरभ