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अब मोहि तारि लै नेमिकुमार॥टेक ॥ खग मृग जीवन बंध छुड़ाये, मैं दुखिया निरधार ॥ अब.॥१॥ मात तात तुम नाथ साथ दी, और कौन रखवार॥अब. ॥ २॥ 'द्यानत' दीनदयाल दया करि, जगते लेहु निकार।। अब ॥३॥
हे नेमिनाथ ! अब मुझे तार लेओ।
आपने पशु-पक्षियों को स्वतंत्र किया, उन्हें बंधन मुक्त किया। मैं भी एक दुखिया हूँ जिसका कोई आधार/सहारा नहीं है, इसलिए हे नेमिनाथ, मुझे भी तारो।
हे नाथ! माता-पिता ने मुझे आपके साथ जीवन-निर्वाह हेतु वचन दे दिया, . अब मेरा कौन रखवाला है?
द्यानतराय कहते हैं कि हे दीनदयाल! कृपा करके मुझको भी इस जगत से बाहर निकालो।
१. इस भजन में श्री नेमिनाथ को वाग्दता राजुल की ओर से विनती की गई है।
झानत भजन सौरभ