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(२५) अब माहि तार ले और भगवान की दीप बिना शिवराह प्रकाशक, भव-तम-नाशक भान॥अब.॥१॥ ज्ञानसुधाकरजोत सदा धर, पूरन शशि सुखदान । अब. ॥२॥ भ्रम-तप-वारन जगहितकारन, 'द्यानत' मेघ समान ॥ अब. ॥ ३॥
हे अरहनाथ भगवान ! अब मुझे तार लीजिए।
आप घने अंधकार में, बिना दीपक के ही मोक्ष की राह दिखानेवाले हैं। इस संसार में भव-भवान्तर रूपी अंधकार का नाश करने के लिए भानु/सूर्य के समान
___ आप ज्ञानरूपी अमृत के सागर हैं, सदैव ज्ञान की ज्योति को धारण करते हैं और पूर्णिमा के चन्द्रमा की भाँति अत्यन्त सुखदाता हैं।
भ्रम-संशय को तप से नष्ट करनेवाले हैं, उसका उन्मूलन करनेवाले हैं । सुख के कारण हैं । धानतराय कहते हैं कि आप मेघ के समान जगत के हितकारी हैं।
द्यानत भजन सौरभ