________________
(२३) अब मोहि तार लै शान्ति जिनन्द ।। टेक॥ कामदेव तीर्थंकर चक्री, तीनों पद सुखवृन्द । अब.॥१॥ सुरनरजुत धरमामृत वरसत, शोभा पूरन चन्द ।। अब.॥२॥ 'द्यानत' तीनों लोक विघन छय, जाको नाम करन्द॥ अब. ।। ३ ।।
हे भगवान शान्तिनाथ ! अब मुझ को तार लीजिए। आप कामदेव हैं, चक्रवर्ती हैं, तीर्थंकर भी हैं। तीनों पद सुख के समूह हैं।
समवशरण में दिव्यध्वनि रूप में धपापत की वर्षा हो रही है । देव व मनुष्य सभी वहाँ एकत्रित हैं । आपकी शोभा पूर्णिमा के चन्द्र समान सुन्दर व पूर्ण है।
धानतराय कहते हैं कि आपका नाम, आपका स्मरण, तीन लोक के समस्त विघ्नों का नाश करनेवाला है, उनका क्षय करनेवाला है।
धानत भजन सौरभ