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(२४) अब मोहि तार लै कुंथु-जिनेश॥टेक ॥ कुंथादिक प्रानी प्रतिपालक, करुनासिंधु महेश ॥ अब. ।। १ ।। सम्यक-रतनत्रय-पद धारक, तारक जीव अशेष ।।अब.॥२॥ 'द्यानत' शोभा-सागर स्वामी, मुकतबधू-परमेश॥ अब.॥३॥
हे कुंथुनाथ जिनराज ! अब मुझे तार लीजिए। कुंथु जैसे छोटे प्राणियों के आप पालक हैं, करुणा के सागर हैं, महाईश हैं।
आपने रत्नत्रय को सम्यकप में धारण किया है, आप सभी जीवों को तारनेवाले हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि आप पूर्ण शोभा के धारी हैं, शोभा के सागर हैं, स्वामी हैं तथा मुक्तिरूपी वधू के प्रिय कंत हैं, परम ईश हैं।
झानत भजन सौरभ