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भज रे भज रे मन ! आदिजिनंद, दूर करें तेरे अघवृंद ॥ टेक ॥ नाभिराय मरुदेवी नंद, सकल लोकमें पूनमचन्द ॥ भज ॥ १॥ जाको ध्यावत त्रिभुवनइंद, मिथ्यातमनाशन जु दिनंद ॥ भज ॥ २ ॥ शुद्ध बुद्ध प्रभु आनंदकंद, पायो सुख नास्यो दुखदंद ॥ जाको ध्यान धरैं जु भुनिन्द, तेई पावत परम अनंद ॥ जिनको मन-बच-तन- करि बंद, 'द्यानत' लहिये शिवसुखकंद ॥
भज. ॥ ३ ॥
भज ॥ ४ ॥
भज. ॥ ५ ॥
हे मेरे मन ! तू आदि जिनेन्द्र भगवान ऋषभदेव का भजन कर, गुणगान कर, जिससे तेरे सारे पाप (पापों का समूह ) दूर हो जाएँगे ।
पिता नाभिराय और माता मरुदेवी के पुत्र सारे संसार में पूर्णिमा के पूर्णचन्द्र की भाँति सुशोभित हैं।
तीनों लोक व इंद्र उनको ध्याते ( उनका ध्यान करते ) हैं । वे मिध्यात्वरूपी गहन अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य के समान हैं।
वे पूर्णतया शुद्ध हैं, ज्ञानी हैं, आनन्द की खान हैं/पिंड हैं। उन्होंने समस्त दुःखों का नाश कर दिया है, वे अनन्तसुख के स्वामी हैं।
मुनिजन भी सदैव उनका ध्यान करते हैं और परम आनन्द को प्राप्त करते हैं । द्यानतराय कहते हैं कि जो उनकी मन, वचन और काय से बन्दना करता है वह मोक्षरूपी सुख - पिंड को प्राप्त करता है।
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दिनंद = सूर्य पिण्ड समूह, राशि
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द्यानत भजन सौरभ