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(१८) सेऊं स्वामी अभिनन्दनको ॥ टेक॥ लेकै दीप धूप जल फल चरु, फूल अछत चंदनको॥ सेऊं ॥१॥ नाचौं गाय बजाय हरषसों, प्रीत करों वंदनको। सेऊं ॥२॥ 'यानत' भगतिमाहि दिन बीते, जीतें भव फंदनको ॥ सेऊ॥३॥
* अभिनन्दन ग्बानी की भक्ति करता हूँ, सेवा करता हूँ।
दीप, धूप, जल, फल, पुष्प, अक्षत, चंदन अर्थात् अष्ट द्रव्य लेकर, मैं उनकी पूजा करता हूँ। ____ अत्यन्त मुदित होकर, गा-बजाकर, नाचकर, हर्षित होकर बड़ी भक्ति से मैं उनकी वंदना करता हूँ।
धानतराय कहते हैं कि जो (जितने) दिन, (जितना) समय इनकी भक्ति में व्यतीत होता है उतने दिन, उतने समय के लिए भव के दुःखों से मुक्त होता है।
धानत भजन सौरभ