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दूसरे व्रत का वर्णन और भेद
.. अब स्थूल मृषावाद विरमण नामक दूसरे व्रत का वर्णन
करते हैं।
वहां स्थूल याने मोटी द्विपद आदि वस्तु सम्बन्धी अति दुष्ट इच्छा से किया जाने वाला मृषावाद याने असत्य भाषण सो स्थूल मृषावाद उसका विरमण, सूक्ष्म का नहीं, क्योंकि वह तो महाव्रत में आता है।
उक्त स्थूल मृषावाद पांच प्रकार का है- कन्या सम्बन्धी, गायसम्बंधी, भूमिसम्बंधी तथा न्यासापहार और कूटसाक्षित्व ।
वहां निर्दोष कन्या को सदोष अथवा सदोष को निर्दोष कहने से कन्यालीक कहलाता है. कन्यालीक, यह पद समस्त द्विपद संबंधी अलीक का उपलक्षण है। .
इस भांति गवालीक भी समझ लेना चाहिये, वह चतुष्पद संबंधी सकल अलीक का उपलक्षण है। ... दूसरे की भूमि को अपनी कहना सो भूम्यलीक है, यह भी सकल अपदं संबंधी अलीक का उपलक्षण है। .....
कोई यह प्रश्न करे कि, तो कन्यादि विशेष व्यक्ति को नहीं लेते सामान्यतः द्विपद-चतुष्पद और अपद को क्यों न लिये ? क्योंकि-पैसा करने से उसके उपरान्त कोई वस्तु न रहने से सर्व संग्रह हो जाता । उसका यह उत्तर है कि- हां, यह बात सत्य है, किन्तु कन्यादिक संबंधी अलीक, लोक में अति गर्हित माना जाता है, जिससे उसे विशेषतः वर्जन करने के लिये लिया है तथा इसी से द्विपद आदि अलीक के अतिरिक्त दूसरे अलीक होते ही नहीं तथापि लोक में अति गर्हित माने जाते न्यासापहार और कूट साक्षित्व को कन्यालीकादिक से पृथक् लिये हैं। :