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देशी शब्दकोश
अप्फोव-१ लता (उ १८१५)। २ वृक्ष आदि से आकीर्ण, गहन
(उशाटी प ४३८)। अफुण्ण-परिपूर्ण (प्रज्ञा २६।५६)। अफुन्न-स्पृष्ट (प्रसाटी प ३०४)। अबीय-दुर्भिक्ष (निचू ४ पृ १२८)। अबोट-अनाक्रमणीय (ओटी प ६२) । अब्बद्धसिरी-इच्छा से भी अधिक फल की प्राप्ति (दे ११४२) । अब्भ--अध्यारोह वृक्ष, वृक्ष पर उत्पन्न होने वाला विजातीय वृक्ष____ 'अब्भेति वृक्षे समुत्पन्नो विजातीयो वृक्षविशेषोऽध्यवरोहकः'
(भटी पृ १४७६)। अब्भंगिएल्लअ-घी आदि से चुपड़े हुए शरीर वाला (ओनि ८२) । अब्भक्खण-अकीर्ति (दे ११३१) । अब्भड आहत, टकराना (आवहाटी १ पृ २८८) । अब्भडवंचिउ-अनुगमन करके (प्रा ४३६५)। अब्भपिसाअ-राहु (दे ११४२) । अब्भवालुय-अभ्रक का चूर्ण (उ ३६१७४) । अब्भाकारिय-कर्माजीवी (?) (अंवि पृ ६७) । अब्भायत्त-प्रत्यागत, वापस आया हुआ (दे ११३१)-'अब्भायत्ता भमन्ति
तुह रिउणो' (वृ)। अब्भायत्थ—पश्चाद्गत, फिर गया हुआ-'अब्भायत्थो पश्चाद् गत इति तु
गोपालः' (दे १।३१ वृ)। अभिडिअ-१ सार, मजबूत । २ संगत, युक्त (दे ११७८)। अभिडिऊण-टकरा कर-'सो चक्के अन्भिडिऊण भग्गो' (उशाटी प १४६) । अब्भुट्टि-हिंसक-'आउट्टि त्ति वा अब्भुट्टि त्ति वा एगट्ठा' (आचू पृ २७५) । अब्भुत्त-प्रदीप्त, चमकदार (निचू ३ पृ ३२१)। अब्भुत्तिअ-१ प्रदीप्त, प्रकाशित । २ उत्तेजित्त (से १५॥३८) । अब्भआण-उफनता हुआ-'आकंठा आदाणस्स भरिया, तो तप्पमाणी
भरिया अब्भूआणा छड्डिज्जति, अग्गि पि विज्झावेति'
(निचू ३ पृ ८५)। अभिचार—उच्चाटन आदि (निचू १ पृ १६३)। अभिणूम---१ माया (सू ११२।७) । २ कर्म (सूचू पृ ५३)।
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