Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 617
________________ ५४८ देशी शब्दकोश पिण–प्राप्त करना, एकत्रित करना (आबघू १४४८) । पिप्पड-बकवास करना, बडबडाना-‘सा तुह विरहुम्मत्ता पिहोमरा पिप्पडइ निच्च' (दे ६।५० वृ)। पिसुण (कथय )-कहना (प्रा ४।२) । पुंछ (मृज्)-मार्जन करना (प्रा ४।१०५) । पुंस (मृज)-मार्जन करना (बृभा ४५६) । पुक्क--चीत्कार करना (प्र ३१५) । पुक्कर-पुकारना। पुच्छ (प्रच्छ)-पूछना (प्रा ४।६७) । पुट्ट (भ्रंश)-नीचे गिरना। पुट्ट (प्र-+उञ्छ)-पोंछना । पुड (भ्रंश)-नीचे गिरना। पुढक्क-प्रसरित होना। पुणब (दश)-देखना । पुम्म (दृश)-देखना। पुल (दृश्)-देखना। पुलअ (दृश्)-देखना (प्रा ४।१८१)। पुलआअ (उत् + लस् )-खुश होना (प्रा ४।२०२) । पुलोअ (दृश्)- देखना (व्यभा ५ टी प ६)। पुव (प्लु) गति करना। पुव्व-कूदना, जाना (भटी पृ १२३६) । पुस (मृज)-मार्जन करना (प्रा ४।१०५) । पूस-पूछना-'प्रच्छ्धात्वर्थे देशी।' पेंडव (प्र--स्थापय)-१ स्थापित करना । २ प्रस्थान कराना (प्रा ४।३७)। पेच्छ (दृश्)-देखना (प्रा ४।१८१) । पेट्ट-पीटना। पेट्रव (प्र+स्थापय)-प्रस्थापित करना।' पेडव (प्र+स्थापय)-प्रस्थापित करना। पेल्ल (क्षिप्)---फेंकना (प्रा ४।१४३)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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