Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 624
________________ परिशिष्ट २ रहआब (रचय् ) – बनवाना । रंडोल ( बोलय् ) - १ झूलना, हिलना । २ कांपना ( प्रा ४/४८ ) । - पकाना, रांधना - (पच्छा धनं रंघेति' (आचू पृ ३३० ) । रंप (तक्ष ) - छीलना, काटना ( प्रा ४|११४) । रंक (तक्ष) | काटना ( प्रा ४। १६४) । रंभ ( गम् ) -- गमन करना, जाना (प्रा ४।१६२) । रंभ (आ+रम्) -प्रारंभ करना । रक्खोल (बोलय् ) – भूलना । ♥ ( रञ्ज्) – राचना, आसक्त होना । रप्प ( आ + क्रम्) -आक्रमण करना । रप्प – खेलना । रम्ह (तक्ष ) - छीलना । रथ-आई करना । रह रहना । रा ( ली ) - श्लेष करना । रा - १ बुलाना (अंवि पृ १०७ ) २ देना । राण (वि + नम् ) – विशेष नमना । राव-आई करना-' - 'से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं रावेहिति' (नंदी ५३ ) । राव ( रञ्जय्) - खुश करना (प्रा ४/४९ ) । रिअ ( प्र + विश्) - प्रवेश करना ( प्रा ४। १८३ ) । रिक्ष - गमन करना । रिक - रेंकना । रिक्क छोड़ना ( आ ६।११४ ) । रिग्ग ( गम् ) - गति करना ( प्रा ४।२५९ ) । रिग्ग ( प्र + विश् ) – प्रवेश करना (प्रा ४१२५९ ) । रिज्ज - रीझना । रिड (मण्डय्) - विभूषित करना । रिर ( राज्) - शोभित होना । रिल्ल -शोभना । Jain Education International ५५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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