Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
परिशिष्ट
५६५ विडव (अर्जय)- अजित करना । विउविर (रचय)-निर्माण करना । विडविड-छटपटाना, बिलबिलाना । विडविड्ड (रचय)-निर्माण करना (प्रा ४।६४) । विस-स्वाद लेकर खाना। विढज्ज (वि+वह)-जलाना । विढप्प-अर्जन करना-'विढप्पंति गुणा' (से १।१०)। विढप्प (व्युत्+पद्)-व्युत्पन्न होना। विढव (अर्ज )-अर्जन करना, उत्पन्न करना-'ताहे केणावि उवायेण विढ
विज्जा सुवण्णं' (उशाटी प १४६) । विण-फटकना, बीनना, छाज से अलग करना-'एगा थेरी सुप्पं गहाय ते
विणेज्जा' (उशाटी प १४६) । विणड (वि+गप्)—व्याकुल करना । विणभ (खेवय)-खिन्न करना । वित-प्रतिषेध करना। वित्थक्क (वि+ स्था)-१ स्थिर होना। २ विलम्ब करना । ३ विरोष
करना। विद्द-बुझाना-'सो ते डहिउं अपच्चलो सिग्धं विद्दाति-उज्झाति त्ति वुत्तं
भवति' (निचू ४ पृ ३५४)। विप्फाड-फाड़ना, नष्ट करना। विप्फाल-प्रश्न करना, पूछना-'विप्फालेइ देशीवचनमेतत् पृच्छतीत्यर्थः'
(व्यभा २ टी प २१)। विफाल-पूछना। विभाड-नष्ट करना । विभर (वि+स्मृ)-भूलना। विम्हर (स्मृ)-स्मरण करना (प्रा ४।७४) । विम्हर (वि+स्मृ)-भूलना (प्रा ४७५) । विर (भज)-भांजना, तोड़ना (प्रा ४।१०६) । विर (गुप्)-व्याकुल होना (प्रा ४।१५०) । विरमाण (प्रति+पालय)—पालन करना, रक्षण करना। विरमाल (प्रति+ईक्ष)-राह देखना (प्रा ४।१९३) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640