Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 636
________________ परिशिष्ट २ सामच्छ - मंत्रणा करना । सामस्थ -- पर्यालोचन करना । सामय ( प्रति + ईश्) - प्रतीक्षा करना ( प्रा ४।११३) । सार ( प्र + ६ ) - प्रहार करना ( प्रा ४८४) । सारब ( समा+रब ) - ठीक करना, दुरुस्त करना (प्रा ४।१५) । सारव -गोपन करना, संरक्षण करना- 'तेण तं पत्तए लिहियं सो सारवेइ' ( उशाटी प १४९ ) । सारव (समा + रम् ) - प्रारम्भ करना । सास ( कथय् ) --कथन करना । साह (कथय् ) – कथन करना - 'साहइ त्ति देशीवचनतः कथयति' ( आवहाटी १ पृ १६० ) । साहट्ट ( सं + वृ ) - संवरण करना (प्रा ४ | ८२ ) । साहर ( सं + वृ ) - संवरण करना (प्रा ४।८२ ) साहस - अविचारित कार्य करना - ' मा साहस' (कु पृ १३७ ) । सिंच (सिच्) -सींचना (प्रा ४६६ ) | सिप (सिच् ) - सींचना (प्रा ४।१६ ) । सिज्ज --- प्राप्त होना । सिप्प ( सिच् ) -- सींचना (प्रा४।२५५) । सिप्प (स्निय् ) - प्रीति कराना ( प्रा ४ । २५५ ) । सिमसिम - उबलने के समय होने वाला शब्द - सिरिहाय - सराहना करना । सिह ( स्पृहय् ) सिह (कांक्ष ) - अभिलाषा करना (प्रा ४।१ε२) । -- इच्छा कराना ( प्रा ४ | ३४ ) । सिहरवय -- इच्छा करना, आकांक्षा करना ( आचू पृ ३३६) । सीतिज्ज निमज्जन करना ( बृभा ६१८८ ) । सीमंत- बेचना | सीय --- फलित होना ( पिनि ८२ ) । सीस ( कथम् ) - कहना ( निभा १२५४ ) । संघ - सूंघना । सुग्गाह ( प्र + सृ ) - फैलना । Jain Education International ५६७ - 'क्वथन शब्दानुकरणे देशी ।' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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