Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 634
________________ परिशिष्ट २ संजव-छिपाना। संजोग (सं+ वृश)-निरीक्षण करना । संठव-१ तीक्ष्ण करना । २ संवारना (निचू २ पृ २२०) । ३ रखना। ४ आश्वासन देना। संतुम (छावय)-आच्छादित करना । सवाण (कृ)-अवलम्बन करना (प्रा ४।६७)। संदुक्ख (सं+दीप्)-जलना । संदुम (प्र+वोप्)-जलाना, प्रकाशित करना (प्रा ४११५२) । संधुक्क (प्र+दीप्)-जलाना, प्रकाशित करना (प्रा ४।१५२) । संधुम (प्र+दीप्)-प्रदीप्त करना। संनाम (आ+द)-आदर करना । संपणोल्ल (संप्र+नुद्)-प्रेरणा करना, चालित करना (द ५।१।३०) । संपसार-मंत्रणा करना (व्यभा ४।३ टी प ८)। संफाण-धोना, प्रक्षालन करना (नि ५११४) । संफोड-मिलाना (निचू २ पृ ३१४) । संभर (सं+स्मृ)-स्मरण करना । संभाव (लुम)---आसक्ति करना (प्रा ४११५३) । संवेल्ल—सकेलना, समेटना । सक्क (सप्)-सरकना। सक्षुध (रम्)-क्रीड़ा करना। सग्ध (कथ)-कहना। सच्चव (दृश)-देखना। सच्छर (दृश्)-देखना । सज्ज-शक्ति ग्रहण करना-'णाणुज्जोया साहू, दब्बुज्जोतंमि मा हु सज्जित्था'. (निभा २२५)। सज्झव-ठीक करना, स्वस्थ करना-'ममं चेव ओलग्गसि तो ते सज्झवेमि' (उसुटी प २७) । सडिअग्ग-बढाना । सद्दह (श्रद्धा )-श्रद्धा करना (प्रा ४।६) । सन्नाम (आ+द)--आदर करना (प्रा ४८३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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