Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 632
________________ ५६३ परिशिष्ट २ विहर (प्रति+ईश्)-प्रतीक्षा करना । विहल्ल-आवाज करना। विहिमिह-विकसित होना। विहि विल्ल (वि+रचय)-निर्माण करना । विहीर (प्रति+ईक्ष)-राह देखना (प्रा ४।१६३) । विहोड (ताडय)---ताडन करना (प्रा ४।२७) । विहोढ-जुगुप्सा करना, विडंबित करना (बृभा ६२३)। वीण (वि+चारय) --विचार करना। वोसर (वि+स्मृ)- भूलना (प्रा ४।७५) । वोसाल (मिश्रय)-मिश्रण करना (प्रा ४।२८)। वीसुंभ--१ मरना, मृत्यु प्राप्त करना-'आयरिय-उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा' (स्था ॥१००)। २ पृथक् होना, अलग होना । बुंज (उद्+नमय )-ऊंचा करना। बुक्कार-गर्जन करना । वुज्ज (त्रस्)--डरना। वुण- बुनना। वेअड (खच)-जड़ना (प्रा ४८६)। वेआर-ठगना, प्रतारण करना । वेंटल-जादूटोना करना (आचू पृ ३३७) । वेंढ-वेष्टित करना, लपेटना । वेढ (वेष्ट)---लपेटना (प्रा ४।२२१)। वेमय (भञ्ज) भांगना (प्रा ४।१०६) । वेलव (वञ्च)-- १ ठगना (प्रा ४।६३) । २ पीड़ित करना । वेलव (उपा+लम्) --उलाहना देना (प्रा ४।१५६) । वेलव--१ कंपाना । २ व्याकुल करना । ३ व्यावृत्त करना, हटाना । ४ मजाक करना। वेलाव (वि+ लम्बय)-विलम्ब करना । वेल्ल (रम)-क्रीड़ा करना (प्रा ४।१६८)। वेहव (वञ्च)-ठगना (प्रा ४।६३)। बोक्क (व्या+ह, उव्+नद्)-पुकारना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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