Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 628
________________ परिशिष्ट २ ब- कलह करना - 'ताहे मातरं वड्ढति ममवि पायसं देहि ' ( आवचू १ पृ ४६६) । बडाव - १ बधाई देना । २ समाप्त करना । बद्धार (वर्धय्) - बढाना । ( वधारवुं -गुज ) । वष्य- - ढकना, आच्छादित करना । बष्फ— भोजन करना (अंवि पृ १०७ ) । बमाल (पु) – एकत्र करना ( प्रा ४११०२) । वरहाड (निर् + सृ) – बाहर निकलना ( प्रा ४।७९) । वरिअल ( गम् ) - जाना । रिअल ( गम् ) —जाना । वरिसण - हाहाकार ध्वनि करना । वल (आ+ रोपय् ) - ऊपर चढाना ( प्रा ४१४७) । वल (ग्रह) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।२०९ ) । लग्ग ( आ + दह ) - आरोहण करना ( प्रा ४। २०६ ) । वलवल - चमकना - 'विज्जुला वलवलेइ' (कु पृ १०१) । वल्लव- लाक्षा से रंगना । वसुआ ( उद् + वा ) -- शुष्क होना, सूखना (प्रा ४|११ ) । वसुआअ ( उद् + वा ) - शुष्क होना । वह - अवलोकन करना । बा (म्लं ) - मुरझाना ( प्रा ४।१८ ) । बाडि - तेज गति से दौड़ना ( जीभा १७२०) । वाडु-भाग जाना - 'देशीवचनमेतत् नशनं करोति नश्यतीत्यर्थः ' ( व्यभा ३ टी प १०३) । वाण (वि + नम् ) – विशेष झुकना, नत होना । वापम्फ (श्रमं कृ ) वाय (म्) - सूखना । --श्रम करना । वाफ ( श्रम कृ ) -श्रम करना (प्रा ४।६८ ) । वावाअ ( अव + काश् ) – अवकाश पाना, स्थान पाना । वास ( अव + कास् ) खांसना । वाह (अव + गाह ) — अवगाहन करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only ५५६ www.jainelibrary.org

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