Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 622
________________ परिशिष्ट २ मइल-निस्तेज होना (से ३।४७) । मंड-१ आगे धरना । २ रचना करना। ३ बिछाना । ४ प्रारंभ करना । मंभीस--अभय देना । मग--गमन करना। मघमघ (प्र+ सृ)....गंध फैलना (भ ११११३३)। मच्च–१ मलिन होना। २ गर्व करना । मज्ज-१ अवलोकन करना । २ पीना । मज्ज (नि+सद्)-बैठना । मड (मृद)-मसलना। मडमड-मड-मड की आवाज करना । मड्ड (मृद्)- मर्दन करना (प्रा ४११२६) । मढ (मृद्)-मर्दन करना (प्रा ४।१२६) । मणाव-मनाना (निचू १ पृ १२०) । ममाय-ग्रहण करना-'जे नियागं ममायति' (द ६।४८) । ममीकर-ग्रहण करना-'ममीकरेंति गेण्हंति' (दअचू पृ १५३) । मगर (चूर्णय)-चूर्ण करना। मर-१ टूटना । २ विस्तृत होना । मरह (मृष)-क्षमा करना । मल (मृद)-मर्दन करना (प्रा ४।१२६)। मलवल-मुंह बनाना। मल्ह-मौज मानना, लीला करना (दे ६।११६ वृ)। मसमसाविज्ज-जलकर राख हो जाना (भ ३।१४८) । मसरक्क-सकुचना, सिमटना । मह (काङ्क्ष)-चाहना (प्र ३१५) । महमह (प्र+स)- गन्ध फैलना, महकना (प्रा ४७८)-'गन्धोद्वाने देशी।' महम्म-आघातित होना । महुण (मथ्)-१ विलोडन करना । २ विनाश करना। माण-अनुभव करना। मिट-मिटाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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