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देशी शब्दकोश
समुद्दणवणीअ- १ अमृत। २ चन्द्र (दे ८।५०) । समुद्दहर-जलगृह (दे ८।२१)। समुद्देस-१ भोज । २ सूर्यमंडल (जीचू पृ ६) । समुप्पिजल-१ अयश । २ रज (दे ८५०)। समोसिब-१ पड़ोसी । २ प्रदोष, सायंकाल । ३ वध्य (दे ८१४६) । समोसितग-पड़ोसी (निचू २ पृ १५४) । समोसितिया-पड़ोसिन (दअचू पृ ५२)। समोसियग-सार्मिक, पड़ोसी-सेज्जगो समोसियगो' (निचू २ पृ २७२) । सम्म -भुजपरिसर्प की एक जाति-'देशविशेषतो वेदितव्याः'
(जीवटी प ४० )। सम्मिका-कान का आभूषण-विशेष-'सासा-सम्मिका-वतंसक-ओवास
कण्णपीलक' (अंवि पृ १८३) ! सयक्खगत्त-यूतकार, जुआरी (दे ८।२१)। सयग्घी-घरट्टी, चक्की (दे ८।५)-'रदसंफालिसयग्घी ण हु थक्कइ
सण्णिअम्मि सुक्के अ' (वृ)। सयझिया-पड़ोसिन (पिनि ३४२)। सयढा-लंबे बालों वाली (दे ८।११)! सयत्त-मुदित, प्रसन्न (दे ८।५) । सयराह-एक साथ, युगपत्-'सयराहेण पणट्ठाई जाण चत्तारि पुवाई'
(ति ८०२) । सयराहं-१ युगपत्-'सयराहमिति देशीवचनं युगपदर्थाभिधायकम्'
(आवहाटी १ पृ १००) । २ एकबार (अनुद्वामटी प १६३)। ३ शीघ्र (दे ८।११)। ४ अकस्मात्-'अक्खसोयप्पमाणमेत्तंपि जलं
सयराहं उत्तरित्तए' (औप १२२)। सयराहा–युगपत् (विभा ६५६) । सयराहु-१ एकसाथ । २ शीघ्र-'सथराहु-युगपत्तूर्णं वा' (आवदी प ७४) । सरंड-भुजपरिसर्प की एक जाति (जीवटी प ४०)। सरग-बांस के छींके के आकार का भाजन (जीव ३।५८७)। सरड-सरड-भोजन करते समय होने वाला शब्द (ओटी प १८७)। सरडीभत-वह फल जो पकता नहीं (निचू ३ पृ ४८५) । सरडु-कोमल-पुप्फाणं पत्ताणं सरडुफलाणं तहेव हरियाणं' (पिनि ४५) । सरड्य-वह फल जिसमें अभी गुठली न बनी हो (आचूला ११११०)।
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