Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 574
________________ परिशिष्ट-२ देशी धातु-चयनिका [इस परिशिष्ट में देशी धातुओं तथा आदेशप्राप्त धातुओं का चयन किया गया है । आगम, उनके व्याख्याग्रंथों तथा प्राकृत व्याकरण की धातुएं सप्रमाण एवं क्वचित् ससन्दर्भ संगृहीत हैं। त्रिविक्रम व्याकरण, पाइअसद्दमहण्णवो तथा कुछ अन्य प्राकृतग्रंथों से गृहीत धातुएं बिना प्रमाण के संकलित हैं । आदेशप्राप्त धातुओं के संस्कृत धातु रूप भी कोष्ठक में दे दिए गए हैं ।] ! अइच्छ (गम्)-गमन करना (प्रा ४।१६२) । अइच्छ (अति+क्रम)-उल्लंघन करना (ओनि ५१८)। अइमल्ह-धीमे चलना। मई (गम्)-गमन करना, जाना (प्रा ४११६२) । अंगुम (पूरय)-पूरा करना (प्रा ४११६६) । अंगोहल–स्नान करना (व्यभा १० टी प ५२) । अंच (कृष्)-१ खींचना (दश्रु ८।१०) । २ खेती करना। ३ रेखा करना (प्रा ४११८७)। अंच-झुकाना-'अचेति ति वा णामेति ति वा एगळं' (सूचू १ पृ २४०) । अंछ (कृष)-१ खींचना-'अंछंति वासुदेवं अगडतडम्मि ठियं संतं' (विभा ७९४) । २ लम्बा होना (विभा ७६५) । अंछाव (कृष)-खींचना-'अब्भतरियं जवणियं अंछावेइ' (भ ११११३८) । अंछि-निकालना, आकर्षण करना (आवहाटी १ पृ १५१) । अंबाड (तिरस्+कृ)-तिरस्कार करना (उसुटी प २) । अंबाड (खरण्ट)-लेप करना-'चमढेति खरण्टेति अंबाडे ति त्ति वुत्तं भवति' (निचू ४)। अकु-खाना-'अकु भक्षणे' (आचू पृ ३४४) । अक्कुस (गम्)-गमन करना, जाना (प्रा ४११६२) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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