Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 602
________________ परिशिष्ट २ तुम (भ्रम्) घूमना फिरना ( प्रा४ । १६९ ) । दुरुतुल्ल (भ्रम्) - घूमना । तुस (भ्रम्) - घूमना फिरना ( प्रा ४। १६१) । ढेंक (गर्ज ) - वृषभ का आवाज करना । ढेंक - धूपित करना, धूप देना । ढोंघ - भ्रमण करना । ढोक्क — बंद करना ( आवहाटी २ पृ ४८ ) । ढोल-नीचे गिराना ( आवचू १ पृ १२३) । ( ढोलना - राज ) । ण णज्ज (ज्ञा ) - जानना ( प्रा४।२५२ ) । णड ( गुप्) - १ व्याकुल करना, बाधित करना ( आवहाटी १ पृ १४६) । २ व्याकुल होना ( प्रा ४।१५० ) । णत्थ - नाक में नथ डालना ( निभा ४३३० ) । णप्प (ज्ञा ) -- जानना ( निचू २ पृ २४) । णवज्ज - नमस्कार करना । णवर ( कथय् ) – कहना । णव्व (ज्ञा ) - जानना (प्रा४।२५२) । णि ( गम् ) - जाना | जिअ (दृश् ) - देखना ( प्रा ४।१८१ ) । णिअंस ( नि + वस् ) – पहनना । णिअवक (दृश्) - देखना । णिअच्छ (दृश् ) - देखना ( प्रा ४। १८१ ) । णिअच्छ ( नि + गम् ) - १ अनुभव करना, भोगना ( सूचू १ पृ २५) । २ अवश्य प्राप्त करना ( सूटी १ प २० ) । णिअड्ड ( नि + कृष्) - खींचना | जिआर ( काणेक्षितं कृ ) --कानी नजर से देखना (प्रा ४।६६ ) | णिउड्डु ( मस्ज् ) – मज्जन करना, डूबना (प्रा ४। १०१) । णिक्कल ( निर् + कस् ) - बाहर निकलना - ' व सहीपालो बाहि णिक्कलिस्सति' (निचू २ पृ १७४) । णिक्काल ( निर् + कासय् ) - बाहर निकालना । ५३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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