Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 614
________________ ५४५ रिक्षिा परिहत्य--प्रत्युपकार करना (से १२।६६)। पाह (शुम्)-- क्षुग्ध होना (फ्रा ४।१५४) । पणाम (अर्पय )-अर्पित करना-'....कुंतग्गेणं लेहं पणामेइ' (ज्ञा १।१६।२४४) । पणाम (उप+नी)-उपस्थित करना। पण्णप्प- पनपना, स्वस्थ होना-'इमो रोगो........कहेहि मे जेण पण्णप्पामि' (निचू ३ पृ ४१७)। पतणतणाय-जोर से गर्जना (भटी पृ १२२१) । पतिरि (वप)-बोना, वपन करना-'कुलत्थाणि वा, जवाणि वा, जवजवाणि वा, पतिरिंसु वा पतिरिति वा पतिरिस्संति . वा' (आचूला १०१६)। पत्तवास-बांधना (निभा ६०४०) । पत्ताण-मिटाना। पदम (गम)-गमन करना, जाना (प्रा ४११६२) । पदेक्ख (प्र-+दश)-विशेष रूप से देखना । पधोव (प्र+धाव)-धोना । पन्नाड (मृद)-मर्दन करना (प्रा ४।१२६) । पबोल्ल-बोलना-'वद् धात्वर्थे देशी।' पब्बाल (छादय)-आच्छादित करना । पमेल्ल-छोड़ना-'मुच् इत्यर्थे देशी।' पम्मेल--- छोड़ना। पम्हस (वि+स्मृ)--विस्मृत करना। पम्हुस (वि+स्मृ)-भूलना (प्रा ४।७५) । पम्हुस (प्र+मुष)--चोरी करना (प्रा ४।१८४) । पम्हुस (प्र+मृश) स्पर्श करना (प्रा ४।१८४)। पम्हुह (स्मृ)-स्मरण करना (प्रा ४७४) । पयंस (प्र+दर्शय)-दिखलाना (कु पृ २४६)। पयर (स्मृ)-स्मरण करना (प्रा ४१७४) । पयल्ल (कृ)-१ शिथिल करना । २ लटकना (प्रा ४७०) । पयल्ल (प्रस)-पसरना (प्रा ४१७७) । पर (भ्रम्)-घूमना (प्र ३९) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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