Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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परिशिष्ट २.
५२३
घत्त (गवषय)--खोजना (प्रा ४।१८९) । घत्त (ग्रह)-ग्रहण करना। घल्ल (क्षिप)-फेंकना, रखना-सायरू उप्परि तणु धरइ, तलि घल्लइ
रयणाई' (प्रा४।३३४ टी)। घवघव-गंध फैलना-'गंधप्रसरणे देशी धातु ।' घा-तृप्त होना, अघाना-'तृप् अर्थे देशी।' घिप्प (ग्रह)---ग्रहण करना (उसुटी प २)। धिव-फेंकना-क्षिप् इत्यर्थे देशी।' घिस (प्रस्)-निगलना (प्रा ४।२०४) । घुट्ट-पेय पीते समय आवाज करना । घुडुक्क (घडघडाशब्दं कृ) गर्जन करना, घड-घड शब्द करना। घुम (घूर्ण )--चक्राकार घूमना (अंवि पृ८०) । घुम्म--घूमना (उसुटी प २३७) 'भ्रमणे देशी धातु।' घुरघुर- घूरना। घुरुक्क-घुड़कना, गरजना-'धुरुक्कंती वग्धा' (उसुटी प १३८) । धुरुधुर-घुरघुराना, सूकर की घुर्-घुर् आवाज-'घुरुघुरंति वराहा'
... (उसुटी प १३८) । घुरहुर-घुर्-घुर् करना । घुल (चूर्ण)-कंपित होना (प्रा ४।११७) । घुसल (मथ्)-मथना, विलोड़न करना (दश्रुचू प २५) । घसुल (मथ)-दही आदि बिलोना (पिनि ५८७)। घे-ग्रहण करो-'गृहाण इत्यर्थे देशी।' घेप्प (ग्रह)- ग्रहण करना (प्रा ४।२५६) । घोट्ट (पा)-पीना (अंवि पृ २५८) । घोल-लुढकना। घोल (चूर्ण)-घूमना, कांपना (निचू ४ पृ २४८) ।
चंछ (तक्ष)-छीलना। चंड (पिष्)-पीसना। चंप-चांपना, दबाना (प्रा ४।३६५) ।
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