Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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परिशिष्ट २
५२९
संप (आ+कामय)-आक्रमण करना। संप (आ+च्छादय)-झांपना, ढकना। संप-गोता लगाना। मड (शब्- १ झड़ना, टपकना, फल आदि का गिरना । २ हीन होना
(प्रा ४११३०)। झड- भगाना-'झड विद्रावणे देशी ।' झडप्प-आक्रमण करना । झडप्प (आ+छिद)-भपटना, छीनना। सण (जुगुप्स)-घृणा करना। झणझण-झन-झन आवाज करना। सप्प (जुगुप्स्)-घृणा करना। सर (स्मृ)-- याद करना, परावर्तन करना (व्यभा ४।४ टी प १०३) । झर-ध्यान करना (आवचू १४१०)। मर (क्षर)-गिरना, झरना (प्रा ४।१७३) । सलक्क (वह)-जलना। झलझल (जाज्वल)-झलकना, चमकना । झलझल (जाज्वल)-झलकना, चमकना । सलहल (जाज्वल)-झलकना, चमकना । मलहल---विचलित होना, क्षुब्ध होना। झलुंक-जलना। झलुंस-जलना। सल्लोज्झल्ल-परिपूर्ण होना, भरपूर होना। झा (ध्य)-चिंतन करना, ध्यान करना (आ ||११५) । झाम (दह.)--- जलाना । झिख-झीखना, गुस्सा करना (विभाकोटी पृ २६३)। सिंझ--झनझनाना। मिज्म (क्षि)~-१ क्षीण होना (उ २०४६) । २ झपना । झिल-झेलना, पकड़ना। झिल्ल (स्ना)-झीलना, स्नान करना। झुंब-लंबा होना।
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