Book Title: Deshi Shabdakosha
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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परिशिष्ट २
अवहर ( गम् ) - गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२) । अवहाड - आक्रोश करना (दे १।४७ ) | अवहाव ( ऋप् ) ) - दया करना ( प्रा ४। १५१) ।
अवहेड ( मुच् ) - छोड़ना ( प्रा ४६१) ।
अवुक्क (वि + ज्ञपय् ) -- विज्ञप्ति करना, प्रार्थना करना ( प्रा ४ | ३८ ) ।
अहिकल ( बह ) – जलाना ( प्रा ४ | २०८ ) ।
-
अहिखीर - १ पकड़ना । २ आघात करना ।
अहिपच्चुअ ( आ + गम् ) – आना ( प्रा ४११६३) ।
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अहिपच्चुअ ( ग्रह ) --- ग्रहण करना ( प्रा ४१२०९) । अहिरेम ( पूरय् ) – पूरा करना ( प्रा ४। १६९ ) । अहिलंख (कांक्ष ) -- अभिलाषा करना (प्रा ४। १६२ ) । अहिलंघ (कांक्ष ) - अभिलाषा करना (प्रा ४।१ε२) । अहिलक्ख (कांक्ष ) – इच्छा करना ।
आ
आअंछ ( कृष्) - १ खींचना । २ जोतना, चास करना । ३ रेखा
करना ।
आअच्छ ( कृष्) - खींचना ।
आअड्ड (व्या + पृ ) - व्यापृत होना (प्रा ४।८१) ।
आअ - परवश होकर चलना ।
आअव्व (वेप्) - कांपना ।
आइंच - आक्रमण करना ।
आइंछ ( कृष्) - खेती करना ( प्रा ४।१८७ )। आइग्घ ( आ + घ्रा) - सूंघना ( प्रा ४|१३) । आउंट ( आ + कुञ्च् ) – संकोचना । आउट्ट ( आ + वृत्)
करना, व्यवस्था करना ( उशाटीप ३२९ ) । २ भूलना । ३ तत्पर होना । ४ निवृत्त होना । ५ घूमना । आउड ( लिख ) - लिखना (जंबूटी प २५० ) । आउड ( आ + जोडय् ) – संबंध करना । आउडाव - घुसेड़ना ( विपा १।६।२३ ) |
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