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परिशिष्ट २'.. अणुसंभर (अनु+स्मृ)-याद करना। अण्ण (भुज)-खाना। अण्ह (भुज)-१ भोजन करना । २ पालन करना । ३ ग्रहण करना
(प्रा ४।११०)। अद्याल-मिश्रित करना (आवमटी प ४५२) । मद्धम (प)-पूर्ण करना, भरना। अप्पाह (अधि+आपय्)-पढ़ाना, सिखाना (से १०।७४) । अप्पाह (आ+मा)-संभाषण करना । अप्पाह (सं+विश्)--संदेश देना (व्यभा ७ टी प ७९)। अप्फड-आहत होना-पाएण वा खाणुए अप्फडइ' (निचू ३ पृ १२२) । अप्फुव (आ+क्रम्)-१ जाना (से ६।५७) । २ आक्रमण करना । अप्फोड--१ ताली बजाना (कु पृ १३२) । २ ताड़न करना । अम्बुत्त (प्र+दीप्)-जलना। अभड-पीछे जाना। अभिड (सं+गम्)-संगति करना (प्रा ४।१६४) । अम्मुत्त (स्ना)-स्नान करना (प्रा ४।१४) । अब्भुत्त (उत् + क्षिप्)-फेंकना । अब्भुत्त (प्र+दीप्)-१ प्रकाशित होना । २ उत्तेजित होना।
(प्रा ४११५२)। अम्माहि-काटना, पकड़ना, पीछा करना-'न मे सो सप्पो अम्माहिती'
(व्यभा ४.१ टी प १३)।। अयंछ (कृष)-१ खेती करना । २ खींचना । ३ रेखा करना
(प्रा ४।१८७)। अलिल्ल (कथय)-कहना। अल्ल-चिल्लाना। अल्ल (नम्)-नीचे झुकना । अल्लत्थ (उत्-क्षिप्)-ऊंचा फेंकना (प्रा ४।१४४) । अल्लव--समर्पण करना। अल्लि (आ+ली)-१ आना । २ प्रवेश करना । ३ जोड़ना । ४ आश्रय
करना । ५ आलिंगन करना । ६ संगत होना (प्रा ४१५४) ।
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