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देशी शब्दकोश सूरंग-प्रदीप (दे ८।४१)। सूरण-कन्द-विशेष (भ ७.६६; दे ८।४१) । सूरणय-कन्द-विशेष, सूरन (उ ३६॥९८)। सूरद्धय-दिन (दे ८।४२) । सूरमल्लि-तृण-विशेष (राजटी पृ १९८) । सूरल्लि-१ मध्याह्न । २ ग्रामणी नामक तृण । ३ मशक की आकृति वाला
कीट (दे ८।५७)। सरिल्लि-प्रामणी नामक तृण (राज १८४)। सरुल्लिया-वनस्पति-विशेष (जीवटी प ३५१) । सूलच्छ-पल्वल, छोटा तालाब (दे ८।४२) । सूलत्थारी-चण्डी, दुर्गा (दै ८।४२) । सूला–वेश्या (दे ८।४१) । सूहव--सुभग (दे ८।४२ वृ)। से-इन अर्थों का सूचक अव्यय-१ अथ (भ ११४२८) । २ प्रश्न
(भ ११४५) । ३ अनन्तरता- आनन्तर्यार्थ : से शब्दार्थः' (स्था १०।६६ टी प ४६६) । ४ तत्, वह-से शब्द: मागध देशीप्रसिद्धो निपातस्तच्छब्दार्थः' (आवहाटी २ पृ २२१) । ५ प्रस्तुत वस्तु का परामर्श, उपन्यास-से नूणं मए पुवं-सेशब्दो मागधप्रसिद्धयाऽथशब्दार्थ
उपन्यासे' (उ २१४० शाटी प १२६)। सेआल-१ ग्रामप्रधान । २ सांनिध्यकर्ता यक्ष आदि (दे ८५८) । ३ कृषक
(पा १२२)। सेआली-दूब (दे ८२७) । सेआलुअ-मनौती की सिद्धि के लिए उत्सृष्ट बैल (दे ८।४४)-'सेआलुओ
उपयाचितसिद्धयर्थं वषभः । उपयाचितं केनापि कामेन
देवताराधनम्' (वृ)। सेइआ-परिमाण-विशेष, दो प्रसृति का एक नाप (अनुद्वामटी प १३६) । सेइंगाल-चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष (जीवटी प ३२) । सेंगलिया-फली (आवमटी प २८७) । सेंगा–१ शंख की तरह बजाया जाने वाला वाद्य (आवच १ पृ ३०६) ।
२ फली (निचू २ पृ २३७) । सेंटा-नाक छींकने का शब्द-'छेलिय सेंटा भण्णति' (जीभा १७२३) । सेंदसप्प-फण वाले सर्प की एक जाति (प्रज्ञा ११७०)।
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