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देसी शब्दकोश
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बग्गुलिया-व्याधि-विशेष-'तस्स संकाए वग्गुलिया वाही जातो'
(निचू १ पृ १५)। बग्गेज्ज–प्रचुर (दे ७३८) । वग्गोअ-नकुल, न्यौला (दे ७४०) । वग्गोरमय-रूक्ष, रूखा (दे ७:५२) । बग्घरणसाला--तोसलि देश में प्रसिद्ध विवाह-मंडप (बृभा ३४४६)
'व्याधरणशाला नाम तोसलिविषये ग्राममध्ये शाला क्रियते, तत्राग्निकुण्डं स्वयंवरहेतोनित्यमेव प्रज्वलति, तत्र च बहवश्चेटकाः एका च स्वयंवरा चेटिका प्रवेश्यन्ते इत्यर्थः । यस्तेषां मध्ये तस्य प्रतिभाति तमसो वृणीते, एषा व्याधरण
शाला' (टी पृ९६३)। बग्घास–१ साहाय्य, मदद । २ विकसित, खिला हुआ (दे ७८६)। बग्घाडिया-१ उपहास के लिए की जाने वाली विशेष ध्वनि
(ज्ञा ११८११४६) । २ विभिन्न देशों की भाषाओं को इस
प्रकार बोलना जिससे सब हंसने लग जायें (बृभा ६३२४) । बग्घाडी- उपहास के लिए की जाती एक प्रकार की आवाज-'अप्पेगइया
वग्घाडी करेंति' (ज्ञाटी प १५१)। बग्घारित-प्रलंबित (जीव ३।३९७) । बग्घारिय-प्रलम्बित-'बग्घारिय-पाणी एगपोग्गलनिविट्ठदिट्ठी'
(भ ३३१०५)। बचाई-क्षुद्र जंतु-विशेष-'भिंगारी अरका व त्ति वचाई इंदगोविगी
(संवि पृ ६६) । बच्च-१ घर के चारों ओर की भूमी,-'गिहस्स समंततो वच्चं भण्णति'
(निचू २ पृ २२४) । २ मृतक के दग्ध-स्थान के चारों ओर की भूमि । ३ श्मशान के चारों ओर की भूमि-'मडयपेरंतं वच्चं भण्णति । सव्वं वा सीताणं सीताणस्स वा पेरंतं वच्चं भण्णति'
(निघू २ पृ २२५) । ४ कूड़ा-करकट का स्थान (आचूला १०।२६)। बच्चक-दर्भ जैसा तृण (बृभा ३६७५) । बच्चग-१ तृणरूप वाद्य-विशेष (जीव ३।५८८) । २ तृण-विशेष-'वच्चगो
दब्भागिती तणं' (निचू २ पृ ३८) । वच्चयचिप्प-वल्वज घास को कूटकर बनाया हुआ (रजोहरण)
(बृभा ३६७४) ।
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