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देशी शब्दकोश वत्थुल्ल-वनस्पति-विशेष, बथुआ (निचू ३ पृ १५९) । वदिकलिअ-वलित, लौटा हुआ (दे ७।५०) । वहल-१ बादल-'समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति' (राज १२) ।
२ दुदिन, मेघकृत अन्धकार (दे ७।३५)।
३ छठी नरक का दूसरा नरकेन्द्रक, नरकस्थान । वद्दलग-बादल (आबचू १ पृ १३७) । वहलिया--१ बदली, छोटा बादल (आवचू १ पृ ३८५) । २ घटाटोप,
मेघाडंबर (स्था ६।६२)। वद्धणिया-झाडू (दे ८.१७) । वद्धणी--संमार्जनी, झाडू (दे ७।४१ वृ) । वद्धमाण-१ स्कन्धारोपित पुरुष । २ स्वस्तिक-पञ्चक । ३ प्रासाद-विशेष
! (ज्ञाटी प ६२) । वद्धय-प्रधान, मुख्य (दे ७४३६)। वद्धिय-नपुंसक-विशेष जिसका अंडकोश छेदकर गला दिया गया हो
(निचू १ पृ ४०; दे ७:३७) । वद्धी---अवश्य-कृत्य, आवश्यक कर्तव्य (दे ७।३०) । वद्धीसक-वाद्य-विशेष (प्र १०.१४ टी)। वद्धीसग--वाद्य-विशेष (अनु ३।४६)। वधूज्ज-विवाह (अंवि पृ १४१) । वधपुत्ती--सुहागरात्री में वधू के रक्त-खरंटित वस्त्रों को देखकर स्वजन
प्रसन्न होते हैं। वे उस वस्त्र को घर-घर ले जाकर गुरुजनों को .. सविनय दिखाते हैं । यह इसलिए कि सभी जान जाएं कि लड़की अक्षतयोनि वाली है अर्थात् गर्भ धारण करने में समर्थ है-'का एसा वधूपुत्ती ? भण्णति-पढमे वास हरे भत्तुणा जोणिभेए कते तच्छोणियेण पोत्ति खरंडियं सूरुदए सयणो से परितुदो पडलकं तं तं पोत्ति घरघरेण गुरुजणपुरतो परिवंदइ दंसेति य, णज्जते रुहिरदसणातो अक्खयजोणि त्ति' (अनुद्वाचू पृ ४८)।
देखें-'आणंदवड'। वपू-थूभ (भ १५८७ पा)। वप्प-१ तनु, कृश । २ बलिष्ठ, बलवान् । ३ भूतगृहीत, भूताविष्ट
(दे ७/८३)। वप्पक- बालक-'पिल्लक-वप्पक-सिंगक-खुड्डक' (अंबि पृ १६६) ।
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