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देशी शब्दकोश
वयल-१ विकसित होता हुआ, खिलता हुआ। २ कलकल, कोलाहल
(दे ७।८४) । वयली-निद्राकरी लता (दे ७।३४) । वर-धान्य-विशेष (भ २१३१६) । वरम-शालि-विशेष एक प्रकार का धान्य (दे ७।३६) । वरइ-जलचर प्राणी-विशेष व पृ ६६) । वरइम-धान्य-विशेष (दे ७।४६)। वरइत्त-दुलहा (दे ७।४४) । वर उप्फ-मृत (दे ७।४७) । वरंड-१ प्राकार, किला। २ कपोतपाली, कबूतरों का दरबा
(दे ७।८६) । ३ तृणपुंज । ४ समूह । वरंडग-प्राकार (निभा २३८७) । वरंडा-बरामदा, वरण्डा (जीविप पृ ३४) । वरक-गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०)। वरक्क-प्रावरण-विशेष-'कोयवगो वरक्को' (निचू ३ पृ ३२१) । वरक्ख-व्याघ्र (बृटी पृ २२१)। वरग-१ शालि-विशेष, एक प्रकार का धान्य (भ ६।१३१)। २ मूल्यवान
पात्र (आचूला १११४३)। वरट्ट-धान्य-विशेष (स्था ७६०)। वरट्टग-धान्य-विशेष (आव २ पृ १२८)। वरड-अति-स्यूल, बहुत मोटा (बृटी पृ ५३) । परी-वंश-भ्रमर के जहर को उतारने की विद्या-'राइणा वाहराविया
गारुडिया भोइयभट्टचट्टाइणो इति। अपि य-जो वरडि पि न याणइ सो वि तत्य वाहरिओ' (उसुटी प १७४) । २ ततैया,
गंधोली । ३ दंश-भ्रमर, काटनेवाली मधुमक्खी (दे ७८४)। वरढ-स्थूल, परिवृद्ध-'थूलं वड्डं वरढं ति परिवूढं ति वा पुणो'
(अंवि पृ ११४)। वरण-सेतुबंध, पुल-'वरणेन सेतुबन्धेन व्रजति' (ओनि ३० टी)। वरवरिका-ईप्सित वस्तु के दान देने की घोषणा, जो मांगो वह मिलेगा
इस प्रकार घोषणापूर्वक दिया जाने वाला दान-'वरवरिका घोष्यते--वरं याचध्वं वरं याचध्वमित्येवं घोषणा समयपरिभाषया वरवरिकोच्यते' (आवहाटी १ पृ ६१) ।
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