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देशी शब्दकोश वंसकवेल्लुय--लंबे बांस पर रखे जाने वाले तिरछे बांस (जीव २६४) । वंसकवेल्लुया-छत के नीचे दोनों ओर तिरछे रखे जाते बांस
(राज १३०)। वंसटोक्कर-बांस की डोरी या खपाची (बृटी पृ १६४१)। वंसप्फाल-१ प्रकट, व्यक्त (दे ७/४८) । २ ऋजु, सरल (व)। . वंसी-मस्तक पर अवस्थित माला (दे ७।३०) । वक्कड-१. दुर्दिन, मेघकृत अन्धकार (दे ७।३५) । २ निरन्तर वृष्टि
'वक्कडं निरन्तरवृष्टिरित्येके' (व) वक्कडबंध-कान का आभूषण (दे ७.५१)। वक्कल्लय-आगे किया हुआ (दे ७।४६) । वक्कस-१ पुराना धान का चावल । २ पुराना सत्तुपिंड। ३ बहुत दिनों
____ का बासी गोरस । ४ गहूं का मांड (उ ८।१२ पा) । वक्काडय-तृण-विशेष (आचू पृ ३५७) । वक्किक-वनस्पति-विशेष (अंवि पृ २३२) । वक्खर-सामान, भाण्ड (बृभा ४४७७)। वक्खार-१ एकान्त कमरा (व्यभा ६ टी प ६१) । २ गोदाम । वक्खारय-१ रतिगृह (दे ७।४५) । २ अन्तःपुर (द)। वक्खीर-तृण विशेष (म २१३१६)। वक्खोइलिया-छिपकली (दजिचू पृ २७८) । वक्खोड-विघ्न-विग्घोत्ति वा वक्खोडत्ति वा एगट्ठा' (आचू पृ.)। बाग-परिक्षेप, परिधि (व्य ६१)। वग्गंसिब-युट, लड़ाई (दे ७।४६) । बग्गय-वार्ता, बात (दे ७।३८) । वग्गली-रोग-विशेष, वमन की व्याधि-'जेमणवेलाए जिमितो या तं संभरिता
उड्ढं करेति । एवं तस्स वग्गली वाही जातो, विणट्ठो य'
(निचू ३ पृ ८१)। वग्गडाव-पत्नी के अधीन रहने वाले पति की एक अवस्था-'इरिथवयणातो
दगमाणेति, सो य लोगसंकितो अप्पभाए चेव सुहसुत्ते पगे रोडेतो
आणेति त्ति वग्गुडावो' (निचू ३ पृ ४२०) । वग्गुरी-अंगुलियों और पैर के ऊपरी भाग को आच्छादित करने वाला जूता
'उरिं तु अंगुलीओ जा छाए सा तु वग्गुरी होति' (निभा ६१८)।
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