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देशी शब्दकोश
थंडिल्ल-१ क्रोध (सू १।९।११)। २ वह स्थान जहां शव को जलाया गया
हो और जहां राख आदि न हो-'छारचिता-विरहितं तु थंडिल्लं (निभा १५३५) । ३ मंडल, वृत्त प्रदेश (दे ५।२५) । ४ शुद्ध
भूमि (बृचू प २०७)। थंब-१ विषम (दे ५॥२४) । २ पतवार (पा ८८२)। थंभ-बिंदु (पा २१४)। थंभायण-गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०)। थकित-थका हुआ, श्रांत (वि पृ २४५) । थक्क-१ श्रान्त, थका हुआ-पच्चूसे पुणो पत्थिया, मज्झण्हे तहेव थक्का'
(उसुटी प ६३) । २ अवसर (आवचू १ पृ ५३१; दे ॥२४) ।
३ ध्वनि-विशेष (जीवटी प २४८) । थगथगित-थर-थर कांपता हुआ (उसुटी प ६५) । थग्गया-चोंच (दे ५।२६) । थग्घ-थाह, अगाध, ऊंडा (दअचू पृ १७४; दे ५।२४) । थग्घा-अगाध, अंडा (पा ८४४) । थट्टि-पशु (दे २४)। थडिक्कग-कांस्य-पात्र (आचू पृ ३४५) । थत्तिअ-विश्राम (दे ५।२६) । थमिअ-विस्मृत (दे ॥२५) । थर-दही के ऊपर की मलाई, थिरकी (दे श२४) । थररित-कांपता हुआ-'सत्तू इव उवढिओ थरथरितो' (निभा ५६१)। थरहरिअ-प्रकंपित-'थरहरिउमारद्धा गिरिणो' (उसुटी प २७८;
दे ५।२७)। थरु-तलवार की मुंठ (दे ५२४) । थलअ-मण्डप (दे ५।२५) । थली–१ देवद्रोणी, गांव का ऐसा स्थान जहां देवी-देवता का मंदिर बना हो
और जहां भेंट-पूजा चढ़ाई जाती हो (निचू ३ पृ ५२१) । २ वैसा स्थान जहां विभिन्न प्रकार के भिक्षुक भोजन लेने आते हों
(व्यभा ७ टी प ४२) । ३ सत्रशाला (बभा १७७५) । थव-पशु (दे ५।२४) । थवहल्ल-जांघ फैलाकर बैठा हुआ (दे श२६) ।
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