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देशी शब्दकोश
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पिहय-नौका खेने का काष्ठ-विशेष (आचूला ३।१६)। पिहुण-मोरपंख (द ४।२१)। पिहुणमिजिया-पिहुणभज्जा, मध्यवर्ती अवयव-'पिहुणमिंजियाइ वा भिसेइ
वा मुणालियाइ वा' (राज २६)। पिहुणहत्थ-मोरपिच्छी (नि १७१३२) । पिहल-मुंह से पवन भरकर बजाया जाता एक प्रकार का तृण-वाद्य
(दे ६।४७)। पिहोअर-कृश (दे ६।५०)। पोइ-तुरंगम, अश्व (दे ६१५१) । पीडरइ-चोरपत्नी (दे ६।५१)। पीडोलक-लता-विशेष (अंवि पृ ३०) । पीढ-१ राज्य-कर्मचारी (आवचू १ पृ ४८०) । २ ईख पेरने का यंत्र
(दे ६३५१) । ३ समूह, यूथ । ४ पीठ, शरीर के पीछे का भाग। पीढमह-१ मुंह पर मीठा बेलने वाला-पीठमर्दा नाम मुखप्रिय-जल्पाः'
(व्यभा ६ टी प ८) । २ सभामंडप में राजा के समीप बैठने वाले अधीनस्थ राजा या मित्र राजा-'पीठमर्दाः-आस्थाने आसीनासीनसेवकाः, वयस्या इत्यर्थः' (ज्ञाटी प २६) । ३ समवयस्क तथा प्रीतिवहुल महाराजपुत्र जो सदा राजा के निकट बैठते हैं (आवचू १ पृ २४५) । ४ महान् राजा-'दासीदासपरिवुडो
परिकिण्णो पीढमद्देहिं' (आवमा ६९; टी पृ १२१)। पीढमुद्द-मुंह पर प्रिय बोलने वाला-'पीढमुद्दा मुहपियजंपगा'
(व्यमा ६ टी प ८)। पीण-चतुष्कोण (दे ६।५१) । पीणक---प्याले के आकार का पात्र (अंवि पृ ६५) । पीणाइय-गर्व से किया हुआ--'पीणाइय-विरस-रडिय-सद्देणं फोडयंतेव
___अंबरतलं' (ज्ञा १११११५६)। पीनाया-गर्व, हठ (ज्ञाटी प ७३) । पीरव्वायणी–वाद्य-विशेष (आवचू १ पृ १८७)। .. पीरिपीरिया-वाद्य-विशेष (आचूला ११४) । पील-दूध--'दुद्धं पओ पीलु खीरं च' (पिनि १३१) । पोलुट्ठ-जला हुआ, दग्ध (दे ६।५१) । पोहग-दूध आदि (आवचू १ पृ ३६१) ।
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