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देशी शब्दकोश महासद्दा-शिवा, शृगाली (दे ६।१२०) । महि-छाछ (आवचू २ पृ १०१) । महिआ-मेघ-समूह (पा ४१६)। महिट-मछे से संसृष्ट, तक्र-संस्कारित (विपा १।६।१२) । महिय--तक्र, छाछ (बृटी पृ ५३) । महियाडुक-घी का मल (बृटी पृ ५०५) । महियाडव-घी का किट्ट, घृत-मैल-'घृतघट्टः महियाडवं' (पंवटी प ६३) । महिलाथूभ-कूपतट-'महिलास्तूपं च कूपतटमित्यर्थः' (आवमटी प ३६०) । महिलिया-महिला, स्त्री (जीभा १६२२) । महिसंद-शिग्र का वृक्ष (दे ६।१२०) । महिसक्क-महिषी-समूह (उसुटी प ७; दे ६।१२४ पा)। महिसिंदु-१ खज्जू री वृक्ष-महिसिंदु-रुक्खस्स त्ति खज्जूरीवृक्षस्येत्यर्थः'
(आवटि प २३) । २ शिग्रु का वृक्ष, सहिजना का पेड । महिसिक्क-महिषीसमूह (दे ६।१२४) । महिसेंद-शिग्रु का वृक्ष (आवचू १ पृ २७६) । महस-१ स्तुति कर याचना करने वाला, मागध । २ वह पक्षी जो 'श्री',
'श्री' ऐसी आवाज करता है, श्रीवद पक्षी (दे ६।१४४) । महंडिम-ग्रहाधिष्ठाता देव-विशेष (निचू ३ पृ २२४) । महुमुह-पिशुन, चुगलखोर (दे ६।१२२) । महुरालिअ-परिचित (दे ६।१२५) । महला-चिलोड़ी, फोड़ा-विशेष-पादे गण्डं महुला भष्णति' (निचू २ पृ.) । महसिस्थ—कर्दम-विशेष, स्त्री के पैरों में लगे अलक्तक तक लगने वाला
कर्दम (ओनि ३३ टी)। महेड्ड-पंक, कीचड (दे ६।११६)। माअलिआ-मातृष्वसा, मौसी (दे ६।१३१)।। माइ-पक्ष्मल, बालों से युक्त (ज्ञाटी प २४६; दे ६।१२८) । २ मयूरित,
पुष्पित । माइं–मा, मत, नहीं (दे ६।१२८ वृ)।' माइंदा--आमलकी, आंवला का गाछ (दे ६।१२६)। माइघर-योगिनी का मंदिर-'वच्च माइघरे सुसाणे कण्हचउद्दसीए बलि
देहि' (उसुटी प ७५)।
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