________________
देशी शब्दकोश
३५३
लंबा-१ केश, बाल (दे ७।२६) । २ वल्लरी। लंबाली-पुष्प-विशेष (दे ७।१६)। लंबूस-कन्दुक के आकार का एक आभरण (आवचू १ पृ २२४) । लंबसग-कन्दुक के आकार का एक आभरण-'ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा'
" (राज ४०)। लंभण-मत्स्य की एक जाति (विपाटी प ७६) । लंभूसास-वाद्य-विशेष (अंवि पृ १४७) । लकड--आभरण-विशेष (अंवि पृ ७१)। लक्कुड- लकड़ी, यष्टि (दे ७१६)। लक्ख–१ छद्म (निचू १ पृ १२७) । २ शरीर (दे ७।१७) । लगंड--वक्रकाष्ठ (उसुटी प ३४६) । लगड्ड-लकड़ी का भारा, लक्कड-गोणातिपिट्ठीए लगड्डादिएसु आणिज्जति'
(निचू २ पृ २०६)। लग्ग-१ असंबद्ध, ऊंची-नीची-सडिय-पडिय-भग्गलग्गाओ' (आचू पृ ३१८;
दे ७।१७ व)। २ चिह्न (दे ७.१७)। लचय-गण्डुत् नामक तृण (दे ७।१७)। लज्जालुइणी-१ लज्जावती (प्रा २।१७४) । २ कलहकारिणी स्त्री। लट्ट-कुसुंभ धान्य (बृभा २०६४)। लट्टणी-यष्टि (आवहाटी १ पृ २७८) । लट्टय-१ कुसुम्भ-'लट्टयवसणा कहं होही' (दे ७।१७) । २ खसखस आदि
का तेल। लट्टा-कुसुंभ धान्य (बृटी पृ ६०३) । लट्र-१ सुन्दर, मनोज्ञ (दश्रु ८।२२; दे ७।२६) । २ अन्यासक्त, दूसरे में
आसक्त । ३ प्रियभाषी (दे ७।२६) । ४ प्रधान, मुख्य । लट्टिय-खाद्य-विशेष- जेट्ठाहिं लट्ठिएणं भोच्चा कज्जं साहिति'
(सूर्य १०।१७)। लडभ- मनोज्ञ, सुन्दर (बृटी पृ ६५३) । लडह-१ सुन्दर, लावण्य-युक्त-'लडहसुकुमाल-मउयरमणिज्जरोमराई'
(दश्रु ८।२४; दे ७।१७) । २ लटकते हुए शिथिल बन्धन-युक्त (जानुवाला)। ३ गाड़ी के पिछले भाग में लटकता हुआ काष्ठ जो गाड़ी के अग्र भाग की रक्षा करता है-'इह लडहशब्देन गन्त्र्याः पश्चाद्भागवति तदुत्तराङ्गरक्षणार्थ यत्काष्ठं तदुच्यते'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org