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देशी शब्दकोश रिट्ठ-१ कौआ (दे ७६) । २ दैत्य-विशेष (से १।३) । रिणकंठ-एक जनपद, जहां की भूमि वर्षाकाल में पानी से भर जाती है
और शेष समय में उसमें दरारें पड़ जाती हैं (निचू २ पृ १५०) । रित्तूडिअ-शाटित, झडवाया हुआ (दे ७१८) । रिद्ध—पका हुआ (दे ७।६)। रिद्धि--राशि, समूह (दे ७१६) । रिप्प-पृष्ठ, पीठ (दे ७।५) । रिमिण-रोदनशील (दे ७१७) । रिरिअ-लीन, आसक्त (दे ७१७) । रीढ–अवगणना, अनादर (दे ७।८) । रीढा--यदृच्छा, इच्छा के अनुसार (बृभा २१६२) । रुअरुइआ-उत्कण्ठा (दे ७।८)। रचण-रूई से कपास को अलग करने की क्रिया (पिनि ५८८)। रुचणी-घरट्टी, दलने का प्रस्तर-यंत्र (दे ७८) । रुचिय-पिष्ट, पीसा हुआ (बृटी पृ ३६२)।
जग-वृक्ष-'कुहा महीरुहा वच्छा रोवगा रुंजगाई य' (दनि १) । रुटणया--अवज्ञा (पिनि २१०) । रुटणा--अवज्ञा-'बहूहिं खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य'
(ज्ञा १।१८।१०)। हंटणिया-१ अवज्ञा, अनादर । २ रोदन क्रिया (ज्ञा १।१६।६७) । हंढ-आक्षिक, जूआरी (दे ७८) ।
ढिअ-सफल (दे ७८)। रुद-१ दीर्घ-रुंदाई पलोएमाणे' (भ १५॥१२०) । २ विस्तीर्ण
(औप ४६) । ३ महान्, विशाल-'संघसमुदस्स रुदस्स' (नंदी गा ११) । रुंद्र-विशाल (कन्नड़)। ४ विपुल । ५ वाचाल
(दे ७।१४)। रुक्क-बैल की भांति शब्द करना-रुक्क ति सद्दकरणं' (अनुद्वाचू पृ १३) । रुगण-- कृष्ण वस्तु-विशेष-अंजणं कज्जलं व त्ति रुगणं' (अंवि पृ ६२) । एण्णमाला--कंठ या वक्षस्थल का आभूषण (कु पृ १९४) । रुप्फय-सर्प आदि के काटने पर किया जाने वाला उपचार-विशेष
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