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भोअ-भाड़ा, किराया (दे ६।१०८ ) ।
भोइ -१ सम्मान-सूचक- सम्बोधन - भोइ त्ति भवति ! आमंत्रणमेतत्' ( उसुटी प २१० ) । २ पत्नी - 'भोइति भारिया' ( निचू ४ पृ ६७ ) । भोइक - गृहस्वामी, पति ( निचू २ पृ १८२) ।
भोइत – गृहस्वामी, पति ( निभा १३६४) ।
भोइय - १ ग्रामप्रधान, गांव का मुखिया ( उ १५६; दे ६ | १०८ ) | २ गारुडक, मंत्र-तंत्र से विष उतारने वाला ( उसुटी प १७४) । ३ पति ( उसुटीप २) ।
भोइया - १ भार्या, पत्नी ( निचू ३ पृ ४८८ ) । २ वेश्या (व्यभा ७ टी प ४३ ) ।
देशी शब्दकोश
भोई - - भार्या ( पिनि ३६८ ) ।
भोज्ज - गुरुस्थानीय व्यक्ति विशेष - 'भोज्जा गुरुत्थाणीया' (आचू पृ ३३१) । भोतिग- पति ( निचू २ पृ ३८३) । भोतिगा - पत्नी ( आचू पृ ३४८ ) । भोतिया - पत्नी (निचू ३ पृ ε२) । भोती - भार्या (व्यभा ४। २ टी प ६७) ।
भोत्तूण - भृत्य, नौकर (दे ६ । १०६ वृ ) ।
भोयग - १ ग्राम का मुखिया (आवचू २ पृ १८० ) । २पति
( निभा ५०८१) ।
भोयडा-लाट देश में जिसे 'कच्छा' कहा जाता है,
भोयगुग्गुलि - कापालिक के पात्र का ढक्कन विशेष ( निचू २ पृ ३८ ) । उसीको महाराष्ट्र में 'भोडा' कहते हैं । कन्याएं इसे बचपन से लेकर विवाहित होने तथा गर्भवती होने तक पहनती हैं। जब वे गर्भधारण कर लेती हैं, तब सामूहिक भोज किया जाता है । उस भोज में सगे-संबंधी एकत्रित होते हैं और वे तब उस गर्भवती कन्या को अन्य शाटक पहनने के लिए देते हैं । उसके पश्चात् वह कन्या 'भोयडा' पहनना छोड़ देती है - "भोयडा णाम जा लाडाणं कच्छा सा मरहट्ठयाणं भोयडा भण्णति । तं च बालप्पभिति इत्थिया ताव बंधंति जाव परिणीया, जाव य आवण्णसत्ता जाया ततो भोयणं कज्जति सयणं मेलेऊण पडओ दिज्जति, तप्पभिडं फिट्टइ भोयडा ' ( निचू १ पृ ५२ ) भोरुड - भारुण्ड- पक्षी (दे ६ १०८ ) |
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भोलिय - वंचित, ठगा हुआ - विसएहिं भोलि हं' (उसुटी प ४७)। भोल्लय – पाथेय - विशेष, प्रबन्ध - प्रवृ र पाथेय, य त्रा-पाथेय (दे ६।१०८) ।
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