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देशी शब्दकोश
दीविका-दर्वी-'दव्वी तध कवल्ली य दीविक त्ति कडच्छकी' (अंवि पृ ७२) दीविच्चग-एक प्रकार का सिक्का । देखें-'दीविच्चिक' (निभा ६५८) । दीविच्चिक-द्वीप-विशेष में होने वाला सिक्का जो एक रुपये के समान
होता था-'साहरको णाम रूपकः, सो य दीविच्चिको। तं च दीवं सुरढाए दक्खिणेण जोयणमेत्तं समुद्दमवगाहित्ता भवति'
(निचू २ पृ ६५)। दोहजीह-शंख (दे ५४१) । दुअक्खर–नपुंसक (दे ५५४७) । दुअग्ग-दंपती (उनि ३६७) । दुएक्का-शौचक्रिया, देहचिन्ता (आवटि प २५) । दंदुमिअ--गल-गर्जित, गले से चिल्लाना (दे ५।४५)। दुंदुमिणी-रूपवती स्त्री (दे ५।४५) । दुंबवती-नदी, सरिता (दे ५१४८)। दुक्कर--माघ मास में रात्रि के चारों प्रहर में किया जाता स्नान
(दे ५।४२)। दुक्कुक्कणिआ-पात्र, पीकदान (दे ५॥४८) । दुक्कुह-१ असहन, असहिष्णु (दे ५।४४) । २ रुचि-रहित (वृ)। दुक्ख-जघन (दे ॥४२) । दुक्खरय-दास (बृभा ६२८५)। दुगंछणा-संयम-'पहू एजस्स दुगंछणाए' (आ १११४५)। दुगूछा-जुगुप्सा (सम २११२)। दुगल्ल-१ वृक्ष-विशेष । २ दुकूल वृक्ष की छाल से बना वस्त्र-'दुकूलो वृक्ष
विशेषस्तस्य वल्कं गृहीत्वा उदूखले जलेन सह कुट्टयित्वा बुसीकृत्य सूत्रीकृत्य च वूयन्ते यानि तानि दुकूलानि' (प्रटी प ७०,७१)।
३ गौड देश में विशिष्ट रूई से निष्पन्न वस्त्र (आटी प ३६३)। दूगल-१ वृक्ष-विशेष । २ दुकूल वृक्ष की छाल से बना वस्त्र । ३ दुकूल वृक्ष
की छाल के सूक्ष्म रोओं से निर्मित वस्त्र ।
(ज्ञा १११।३३ टी प३०) । देखें-'दुगुल्ल' । दग्ग-१ कष्टप्रद-वेयणं उदीरेंति-उज्जलं विउलं..."दुग्गं' (भ ५११३८)।
२ दुःख-'दुग्गजलोघदूरणिवोलिज्जमाण' (प्र ३३३) । ३ कमर
(दे ५।५३)। ४ युद्ध । दुग्गव-दुष्ट बैल (द ६।२।१६) ।
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