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देशी शब्दकोश
२६१ पक्कण-१ म्लेच्छ जाति, चाण्डाल (जंबू ३।११) । २ असहिष्णु । ३ समर्थ
(दे ६।६६) । ४ एक नीच जाति का घर, शबर-गृह । ५ अधम
(कु पृ८१)। ६ एक अनार्य देश। पक्कणकुल-गर्हित कुल-'पक्कणकुले वसंतो सउणीपारोऽवि गरहिओ होइ'
(आवहाटी २ पृ २०)। पक्कणय-एक अनार्य देश (प्रसा १५८३) । पक्कणि-१ अत्यन्त शोभित । २ भग्न, टूटा हुआ। ३ प्रियभाषी,
(दे ६०६५)। पक्कणिक-अनार्य देश में रहने वाली जाति-विशेष (प्रटी प १५) । पक्कणिय- म्लेच्छजाति-विशेष (प्रटी प १४) । पक्कणी-अनार्य देश-विशेष की दासी (ज्ञा १।११८२)। पक्कल-१ प्रौढ । २ समर्थ (कु पृ १९८) । ३ दर्पयुक्त, गर्वित । पक्कस--सुरा आदि का पुराना मैल (निचू ४ पृ २२३) । पक्कसावअ--१ शरभ, अष्टापद । २ व्याघ्र (दे ६।७५) । पक्काणिय-म्लेच्छ जाति-विशेष (प्र ११२१) । पक्खडिअ-प्रस्फुरित (दे ६।२०)। पक्खड–त्रिकोण वस्तु-विशेष (अंवि पृ ११७) । पक्खर–१ पाखर, घोड़े का कवच (आवचू १ पृ ५६७) । २ जहाज की
रक्षा का एक उपकरण । पक्खरा–घोड़े का कवच, अश्व-संनाह (विपा १२।१४; दे ६।१०)। पक्खरिअ-कवचित, कवच से सज्जित (अश्व)-'पवखरिअपत्थिअहओ'
(दे ६।१० वृ)। पक्खापक्खि नपुंसक का एक प्रकार-'वामदक्खिणेसु पक्खापक्खिणो
विण्णेया' (अंवि पृ २२४) । पक्खोडिअ—झाडा हुआ, निर्झटित (व्यभा १० टी प ५२; दे ६।२७) । पखरगत-वाद्य-विशेष-'वीणा मसूर का पखरगतं दद्दरका आलिंगा मुरव'
(संवि पृ २३०)। पगढग-पथ-दर्शक, नायक (सूचू १ पृ २१३) । पग्गेज्ज---निकर, समूह (दे ६।१५) । पचलाक-वृक्ष पर रहने वाला प्राणी-विशेष (अंवि पृ २२६) । पच्चंगिर-चोरी का दोष (बृभा २०३८) । पच्चग-मुंह से बजाया जाने वाला बाजा (आवच १ पृ ३०९) ।
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