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देशी शब्दकोश पटुहिम-कलुषित पानी, हिलाया-डुलाया हुआ पानी (पा १५८) । पट्ठिसंग-ककुद, बैल के कंधे का कूबड़ (दे ६।२३) । पडंचा-प्रत्यंचा, धनुष की डोरी (दे ६।१४) । पडंसुआ-प्रत्यंचा, धनुष की डोरी (दे ६।१४)। पडक-उद्भिज्ज जन्तु की एक जाति (अंवि पृ २२६) । पडच्चर-साले की भांति हंसी-मजाक करने वाला विदूषक आदि (दे ६।२५) पडप्पयार-बहाना, मिष-'इमेण दिव्व-चित्तयम्म-पडप्पयारेण कारणंतरं किं
पि चिंतयंतो दिव्वो देवलोयाओ समागओ त्ति' (कु पृ १६०)। पडमट्ठ-खाद्य-विशेष (अंवि पृ ७१) । पडल-नीव, मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार का खपड़ा जिससे मकान छाये
जाते हैं (दे ६।५)। पडलग-टोकरी-पुप्फपडलगं वा पुप्फछज्जियं वा' (राज १२)। पडवा-पट-कुटी, तम्ब (दे ६।६) । पडहत्थिग-भाजन-विशेष (आव २ पृ ७०) । पडाग--मत्स्य का एक प्रकार (प्रज्ञा ११५६) । पडाल-फलक,मुष्टि (दश्रुचू प ७४) । पडालिका-गृह-उपकरण, चटाई आदि (अंवि पृ ७२) । पडाली-१ कच्ची छत, चटाई आदि से छाया हुआ स्थान
(निचू २ पृ ४२०) । २ छोटी कुटिया (आवटि प ३६) ।
३ पंक्ति, श्रेणी (बृभा ११०७; दे ६।९) । पडिअ--विघटित, वियुक्त (६।१२) । पडिअंतअ-कर्मकर, नौकर (दे ६।३२) । पडिअग्गिअ-१ परिभुक्त। २ वर्धापित । ३ पालित (दे ६७४) ।
४ अनुवजित, अनुसृत (वृ)। पडिअज्झअ--उपाध्याय (दे ६।३१) । पडिअट्टलिय-घृष्ट, घिसा हुआ (से ६।३१) । पडिअर-चूल्हे का मूल भाग (दे ६।१७) । पडिअलि-त्वरित, वेगयुक्त (दे ६।२८) । पडिएल्लिअ--कृतार्थ (दे ६।३२) । पडिएल्लिआ—कृतार्थता-'पडिरंजिअपडिमाए कि रे पडिएल्लिआइ होइ
फलं' (दे ६।३२ वृ)।
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