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देशी शब्दकोश
२४३ वच्छ-तीक्ष्ण, तीखा (दे ५।३३)। बडबड--१ धाटी, कपट से आक्रमण करना, छापा मारना (दे ५।३५) ।
२ शीघ्र । दढक-गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०) । वढगालि–१ धोया हुआ वस्त्र-'दढगालिधौतपोतिः' (जीविप पृ ५१) ।
२ ब्राह्मणों का धोया हुआ किनारी वाला वस्त्र-विशेष
(प्रसा ६७६)। दढमढ-१ मूर्ख । २ एकग्राही, एक ही वात को पकड़कर चलने वाला
(दे ११४ वृ)। वत्थर-कर-शाटक, रूमाल (दे ५१३४) । वहर-१ दद्दर नामक पर्वत-'दद्द रमलयगिरिसिहर' (ज्ञा ११६२५८)।
२ सघन, प्रचुर-गोसीससरसरत्तचंदणददरदिण्णपंचंगुलितला' (समप्र १४४) । ३ चपेटा का आघात-'दर्दरेण-चपेटाभिघातेन। ४ सोपानवीथी-'दर्दरेषु-सोपानवीथीषु' (टी प १२८)। ५ प्रहार'पाददद्दरं करेंति' (आवचू १ पृ १४८)। ६ वचन का आटोप (प्रटी प ४६) । ७ वाद्य-विशेष (जंबू २) । ८ पात्र के मुंह पर बांधा जाने वाला कपड़ा, ढक्कन (आवचू २ पृ १०१)। ६ वस्त्र से
अवनद्ध मुंह वाला पात्र (भटी पृ ८७७)। वहरग--१ प्रहार-'पायदद्दरगं करेइ' (भ ३।११२) । २ गोह के चर्म से
मढा हुआ वाध-'यस्य चतुभिश्चरणैरवस्थानं भुवि स गोधाचर्माव
नद्धो वाद्यविशेषः' (जंबूटी प १०१) । वहरय-१ आच्छादन-भायणे छुहित्ता पोत्तेण दह रओ कीरइ'
(आवहाटी २ पृ ६०)। २ आघात, प्रहार-'अप्पेगतिया पाददद्दरयं
करेंति' (राज २८१)। बद्दरिका-वाद्य-विशेष (अनुद्वाचू पृ ४५) । बद्दरिगा-वाद्य-विशेष-'ताडिज्जंताणं दद्दरगाणं दद्दरिगाणं' (राज ७७)। वहरिया-१ वाद्य-विशेष-'गोधा चम्मावणद्धा गोहिता सा य दद्दरिया'
(अनुद्वाहाटी पृ ६६) । २ प्रहार, आघात (ज्ञा १।१६।२६१) । वधिफोल्लइ-वनस्पति-विशेष (भ २२१६) । दप्पसायण-एक प्रकार का बंधन-'दिण्णं से दप्पसायणं णाम बंध'
(कु पृ १३६)। घन्भमील-म्लेच्छ-विशेष-'ते य मिलक्खू दब्भमीलादि' (निचू ३ पृ ३५०)।
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