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देशी शब्दकोश
१९३ जल्लिया-शरीर का मैल–'जल्लिया मलो' (दअचू पृ १८६)। जल्लसत—जलोदर (आवहाटी २ पृ १३४) । जल्लूसय–जलोदर रोग (आवहाटी २ पृ १३४)। जल्लोसहि-एक तरह की आध्यात्मिक शक्ति जिसके प्रभाव से शरीर के
मैल से रोग नष्ट होता है-'खेलोसहिपत्तेहिं जल्लोसहिपत्तेहिं
विप्पोसहिपत्तेहिं सव्वोसहिपत्तेहि' (प्र ६।६) । जवअ-यव-अंकुर (दे ३।४२) । जवण-हल का ऊपरी भाग (दे ३।४१) । जवरअ- यव-अंकुर (दे ३।४२) । जहणरोह--जंघा (दे ३।४४) । जहणसव-अोस्क, आधी साथल तक पहनने का वस्त्र, स्त्रियों का वस्त्र
विशेष (दे ३।४५)। जहाजाअ-जड, मूर्ख-'जहाजायपसुभूया' (प्र ३।२४; दे ३।४१)। जहिमा--विद्वान् द्वारा रचित गाथा (दे ३।४२)-'तुह जहिमं तत्थ
गायन्ति' (वृ)। जाइ–१ गुल्म वनस्पति-विशेष (प्रज्ञा ११३८।२) । २ मदिरा (दे ३।४५) ।
३ मदिरा-विशेष--सुरं च महुं च मेरगं च जाई च' (विपा २।२४) । जाइंभर--मादक-'जाइंभराई मण्णे इमाइं णयणाइं होंति लोयस्स'
(कु पृ २२४) । जाउ-कपित्थ का फल (बृटी पृ ५४) । जाउर-कपित्थ वृक्ष (दे ३।४५) । जाउलग-गुच्छ वनस्पति-विशेष (प्रज्ञा ११३७।५) । जाउलया-क्षीरपेया (ओटी प १९६) । जाग-खाद्य-विशेष, लपसी आदि (अंवि पृ ७१)। जाडी-गुल्म, लता-प्रतान (दे ३।४५) । जामइल्लय-पहरेदार (कु पृ १२३)। जामिलिका-वस्त्र-विशेष (अंवि पृ ७) । जार-मणि का लक्षण-विशेष (राज २४)। जार-अनंतकाय वनस्पति-विशेष (भ २३।१)। जारुकण्ह-गोत्र-विशेष (स्था ७।३७) ।
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