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देशी शब्दकोश नरिव-पारे को बांधने वाला-'जो उण बंधइ णिउणो रसं पि सो भण्णइ
रिंदो' (कु पृ १९७) । णल-मत्स्य की एक जाति-'रोहित-पिचक-णल-मीण-चम्मिराजो'
(अंवि पृ २२८)। णलक-खस का तृण (आवचू १ पृ ३७२)। णलथंभ-वृक्ष-विशेष-'सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो उच्छुवाडमज्झमि ।
कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ॥'
(आवनि १११७)। णलय-खस का तृण (दे ४११६) । पलिअ-गृह (दे ४।२०)। पल्लग-पात्र-विशेष (जंबूटी प १००)। णल्लय-१ कर्दमित, कीचडवाला । २ बाड का विवर । ३ प्रयोजन ।
४ निमित्त (दे ४१४६) । णवणीइया--गुल्म वनस्पति-विशेष (प्रज्ञा ११३८॥३)। णवतय--बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण-विशेष (ज्ञा १११।१८) । णवय-बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण-विशेष-'अत्थुरणं पाउरणं वा
____ अकत्तिय उन्नाए नवयं कज्जति' (निचू ३ पृ ३२१) । णवर--१ केवल, सिर्फ (आचूला १।३४) । २ अनन्तर । णवरं-१ केवल, इसके अतिरिक्त-'एवं जहा महब्बले, नवरं-गोयमो
नामेणं' (अंत १।१७) । २ अनन्तर (आवचू १ पृ २४६) । णवरि-१ केवल (प्र६१) । २ अनन्तर (से ११।६८)। णवरिअ-सहसा, शीघ्र (दे ४।२२) । णवलय-व्रत-विशेष-दोलाविलाससमए पुच्छंतीहिं सहीहिं पइणामं ।
लट्ठीहिं हणिज्जती वहुया णवलयवयं भरइ ॥' (दे ४।२१ वृ)।
देखें-'णवलया। णवलया-नियम-विशेष, जिसके अनुसार सभी लोग पलाश की लताएं लेकर
घूमते हैं तथा विभिन्न स्त्रियों को अपने-अपने पति का नाम पूछते हैं । जो स्त्री अपने पति का नाम नहीं बताती, उसे पलाश की लता से आहत करते हैं-'जत्थ पलासलयाए जणेहि पइणाम पुच्छिा जुवई। अकहन्ती णिहणिज्जइ णिअमविसेसो णवलया
सा।' (दे ४।२१)। णवसिअ-उपयाचितक, मनौती (दे ४।२२ वृ) ।
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