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देशी शब्दकोश
झज्झरी-स्वयं को कोई न छुए-यह बताने के लिए चांडाल आदि जाति
के लोग अपने हाथ में एक यष्टि रखते हैं, वह । इखका दूसरा नाम
'खिक्खिरी' है (दे ३।५४)। सड-१ झडा हुआ--पत्र-पुष्पों से रहित-वणसंडे..."जुण्णे झडे परिसडिय.
पंडपत्ते' (राज ७८२) । २ शीघ्र (बृटी पृ १३१६) । सडप्पड-शीघ्र (प्रा ४१३८८) । झडप्पिअ-छीना हुआ (दे ५।३४ वृ)। शडिज्जंत-आहत होता हुआ, खिन्न होता हुआ-'वासेण झडिज्जंतं दळूणं
वानरं थरथरेंतं' (आवमटी प ३४५) । झडित-झड़ा हुआ (निचू ३ पृ २७०)। सडिय-१ डांटना, फटकारना (निचू ३ पृ २७०) । २ शिथिल, ढीला।
३ थान्त, खिन्न (म ४४७) । ४ झड़ा हुआ, गिरा हुआ। सडी-निरन्तर वर्षा (दे ३।५३) । झडरविडर--जादू-टोना (व्यमा ४।३ टी प ४६)। सत्य-१ गत, गया हुआ। २ नष्ट (दे ३।६१)। सपित-कम्पित (अंवि पृ १४३) । समाल-इन्द्रजाल (दे ३१५३) । सरस-सुवर्णकार (दे ३।५४) । सरंक-तृण का बनाया हुआ पुरुष, चञ्चा (दे ३१५५) । सरंत-तृण-पुरुष, चञ्चा (दे ३१५५ वृ) । सरक-१ स्मरण करने वाला-'सुत्तत्थे मणसा झायंतो झरको'
(नंदीचू पृ८) । २ ध्यान करने वाला (नंदी टी पृ १२) । झरणा-१ स्मरण-'एवं सो झरणाए दुब्बलो जातो' (आवचू १ पृ ४१०)।
२ झरना, टपकना (बभा ६००७) । झरय-ध्यान करने वाला- जो दुब्बलिओ सो झरओ' (आवचू १ पृ ४०६) । झरुअ-१ मच्छर, मशक (दे ३।५४) । २ झींगुर-'मशकवाचकशब्दाश्चीर्या
___ मपि वर्तन्ते । यदाह- मशकाख्याश्चीर्यामप्युच्यन्ते काव्यतत्त्वज्ञैः' (व)। झलक्किय--दग्ध, संतप्त (प्रा ४।३६५) । झलज्झल-पानी का शब्द (ओटी प ३७६) । झलझलिआ-थैली (दे ३१५६) । झला-मृगतृष्णा, मृगमरीचिका (दे ३१५३) ।
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