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देशी शब्दकोश
केआरबाण-पलाश वृक्ष (दे २।४५) । केउ-कन्द, कांदा (दे २१४४)। केकर-ऐंचाताना, आंख का रोग, जिसमें आंख की पुतली ताकते समय दूसरी
तरफ खिची रहे (दअचू पृ १६७)। केचइ-वलय-वनस्पति-विशेष (प्रज्ञा ११४३)। केतरात-मुद्रा-विशेष, एक प्रकार का सिक्का (निचू ३ पृ १११) । केदकंदली-कन्द-विशेष (उ ३६।६७) । केद्दह–कितना-'केदह त्ति किंप्रमाणानि' (बृभा ७६८ टी)। केयण-१ माया। २ टेढ़ी वस्तु चंगेरी आदि-'छज्जिया-लेवणगंडो केयणं ति
भण्णति' (निचू ३ पृ १४६) । केयर-टेढ़े अंग वाला (कु पृ १३०) । केयवसक-फल-विशेष (अंवि प्र २३८) । केया-रज्जु, रस्सी (भ १३।१४६; दे २१४४) । केयाघडिया-रज्जु के प्रान्त से बंधी हुई घटिका
(भ १३।१।१ टी पृ ११५२)। केर--संबंधित वस्तु (प्रा ४।३५६) । केला--भांड-विशेष (अंवि ३०)। केली—कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री (दे २।४४) । केवग-कितना (निचू ३ पृ १०४) । केवडिय-१ पूर्वदेश में प्रचलित केतर' नाम का सिक्का (बृभा १९६६) ।
२ कितना (पंक १८०१) । केसुक-पलास (अंवि पृ २३९) । कोआसित-विकसित (जंबूटी प ११३) । कोइलच्छद-तैलकण्टक, वनस्पति-विशेष-'जो एत्थ कोइलच्छदो सो
तिलकंटओ भण्णइ' (प्रज्ञाटी प ३६२)। कोइला---कोयला (दे २।४६) । कोउआ-कंडे की अग्नि, करीषाग्नि (दे २०४८) । कोऊहल्लिल-कुतूहल करने वाला (ओटी पृ २१६) । कोंटक-तुष-'तुस त्ति कोंटको व त्ति कक्कुसो तप्पणो त्ति वा'
(अंवि पृ १०६)।
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