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देशी शब्दकोश
__१६१ घुसुली-बिलौना करने वाली स्त्री (पिनि ५७३) । घरा-१ जंघा । २ खलक-शरीर का अवयव-विशेष (सू २।२।२२) । घरीया-१ जंघा । २ खलक-शरीर का अवयव-विशेष
(सूटी २ प ६६)। घेइण-बहुरूपिया-'घेइणो इव अणेगसरीरकिरियाओ करेंतो कंदप्पा भवंति
(निचू ४ पृ २५)। घेवर-मिष्टान्न-विशेष, घृतपूर (दे २।१०८) । घोट-बूंट-'आउक्काए जति सो घोट्ट करेइ ततिया चउलहुगा'
(निचू ४ पृ ४८)। 'घोड-१ धूर्त (निभा १७१३) । २ कामासक्त (निच २ पृ ४४०)।
३ नीच जाति के लोग, डंगर आदि (व्यभा ७ टी प ४१)। ४ राज्य
कर्मचारी (बृभा २०६६) । ५ सफाई करने वाले (बृभा २६३४) । घोडग–घोड़ा (आचू पृ ३७३) । घोडा-घोड़ा (जीवटी प ३८)। घोडिय-मित्र (बृ ५) । घोर-१ विनष्ट । २ गीध पक्षी (दे २।११२) । घोरण-खर्राटे भरना (ओटी प ५८) । घोरि—शलभ-विशेष (दे २।१११) । घोरइणिया-देश-विशेष की दासी (ज्ञाटी प ४७) । चोल-१ वेष्टित (आवहाटी १ पृ २८३) । २ वस्त्र से छाना हुआ दही
(प्रसा २२६)। चोलचम्म-एक प्रकार का थैला (नंदीटि पृ १३८) । घोलवड-खाद्य पदार्थ, दहीबड़ा (प्रसा २२६)। घोलिय-१ अत्यंत लीन-'अज्जरक्खिओ जविएसु अईव घोलिओ पुच्छइ'
(उसुटी प २४) । २ शिलातल । ३ बलात्कार (दे २।११२)। चोलिर–घूमने वाला (उसुटी प ६०)। घोसालई-लता-विशेष (प्रज्ञाटी प ३३) । घोसाली-शरद् काल में होने वाली लता-विशेष (दे २।१११)। चोसेडिय–पटोल का शाक (राजटी पृ ८६)। घोहणुमच्छ—मत्स्य-विशेष (अंवि पृ २२८)।
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