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देशी शब्दकोश चकप्पा-त्वक, छाल (दे ॥३) । चकोरित-विद्योतित (नंदीचू पृ ६) । चक्कणभय-नारंगी का फल (दे ३१७) । चक्कणाहय-अमि, तरंग-'णीसासचक्कणाहयताविय' (दे ३।६)। चक्कल-१ सिंहासन के चार पादों के नीचे का वर्तुलाकार भाग
(जंबूटी प ५५) । २ गोलाकार तकिया (बृटी पृ १०५५) । ३ कुंडल । ४ वर्तुल । ५ झूले का फलक । ६ विशाल
(दे ३२०)। चक्कलंडा-दुमुही सर्पिणी (आवदी प १६३) । चक्कलित-गोलाकार टुकड़ा (आचू पृ ३४४) । चक्कलिय-गोल (निचू ३ पृ ४८१) । चक्कबुंडा-दुमुही सर्पिणी (आवमटी प ४६७) । चक्किम- अति उत्तम-'चक्किमातिउत्तमा ते णियमा तप्पमाणजुत्ता भवंति'
(अनुद्वाचू पृ ५२)। चक्किय- समर्थ-'चक्किया णं गोयमा ! के ई तासु पदीवलेस्सासु आसइत्तए'
(भ १३॥८७)। चक्कुलंडा-सर्प-विशेष (दे ३१५)। चक्कुलेंडा-दुमुही सर्पिणी (आवहाटी १ पृ २३८) । चक्कोडा-अग्नि-विशेष (दे ॥२)। चक्खडिअ--जीवितव्य, जीवन (दे ३।६)। चक्खणिक-आस्वादनिक, चखने योग्य (अंवि पृ २५८) । चक्खिअ-चखा हुआ, आस्वादित (प्रा ४१२५८) । चक्खुड्डण-प्रेक्षणीय नाटक आदि (दे ३।४) । चक्खमेंट-एक आंख को खोलना और दूसरी आंख को बंद करना
_ 'चक्खुमेंटा णाम एक्कं अच्छि उम्मिल्लेति, बितियं णिमिल्लेति'
(निचू ४ पृ ३५४)। चक्खुरक्खणी-लज्जा (दे ३७) । चच्च-विलेपन (दे ६७६) । चच्चपुट-घोड़ों का विशेष पादघात जिससे उनकी उन्मत्तता द्योतित होती
हो (जंबू ३।१०६ पा)।
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