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देशी शब्दकोश
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कोज्जक-कमल की एक जाति-इंदीवरं कोज्जकं ति पाडलं कंदलं ति वा'
(अंवि पृ ६३)। कोज्जन-पक्षि-विशेष (भटी पृ ११५३)। कोज्जप्प-स्त्री-रहस्य, स्त्री-चरित्र (दे २।४६) । कोज्झरिअ-आपूरित, भरा हुआ (दे २०५०)। कोटिंब-उडुप, नाव (निचू ३ पृ ३६४) । कोटेंभ-हाथ से आहत जल (पा ३२७) । कोट्ट-१ नगर (सूचू १ पृ १३८; दे २।४५) २ किला, दुर्ग (प्रटी प १७) ।।
३ आक्रमण-परबलकोटं च वट्टति' (निचू १ पृ८) । ४ फल पकाने का स्थान-'फलाणि व जत्थ पच्चंति तं कोटें' (निचू ३ पृ २१४) ।
५ क्रीडा । ६ दुर्गा (प्रटी प १७) । कोटुंब-गौड देश में बना वस्त्र-विशेष-कोटबानि गौडदेशोद्भवानि'
(व्यभा ७ टी प ७)। कोट्टकवास-वृक्ष-विशेष (अंवि पृ २३८) । कोट्टकिरिया-दुर्गा-कोट्टकिरिया महिषावरूढदुर्गा' (ज्ञाटी प १४६)। कोट्टग-१ चण्डाल-बस्ती (बृभा ६६३) । २ अटवी का वह स्थान जहां फलों
के ढेर किए जाते हैं (बृटी पृ २७६) । ३ हरे फलों को सुखाने का
स्थान-विशेष (निभा ४७३२) ४ बढ़ई (जीभा ४२६)। कोट्टज्जा---नगर की देवी (कु पृ ८३) । कोनी-महिष का व्यापादन करने के पश्चात् उस रूप में अवस्थित दुर्गा
देवी का एक नाम-'दुर्गा महिषव्यापादनकालात् प्रभृति तद्रूपस्थिता
कोट्टनी भण्णति' (अनुद्वाचू पृ १२) । कोद्रपाल-कोतवाल (प्रटी प ४६) । कोट्टर-पोला भाग-'अज्झुसिरो जत्थ कोट्टरं णत्थि' (निचू २ पृ १५२)। कोटा--१ गला, गर्दन-पच्छा तेण कोट्टाए गहिओ' (उसुटी प ५३)।
२ पार्वती (दे २।३५) । कोट्टाक-वर्धकी, बढ़ई (अंवि पृ १६०) । कोट्टाग--बढई, काष्ठतक्षक (आचूला ११२३) । कोट्रिब-१ गाय-'जह पढमपाउसम्मि, गोणो वातो उ हरितगतणस्स । अणुमज्जति (अणुसज्जति) कोटिंबं, वावण्णं दुब्भिगंधीयं ।'
(निभा ३५७८)। २ गोशाला, ऐसा स्थान जहां गायों के लिए खाद्य रखा जाता है
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